अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय बैंकों का प्रदर्शन पिछले साल अपेक्षाकृत बेहतर रहा। वैश्विक स्तर पर बात करें
भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक
, जून 2007 के अंत तक डेरिवेटिव्स में भारतीय बैंकों के प्रदर्शन की बात करें, तो यह 79 फीसदी की बढ़त के साथ 13,999 करोड़ रुपये की रही। हालांकि वर्ष 2006 में इसी अवधि के दौरान यह आंकड़ा 7,818 करोड़ रुपये रहा था।
डेरिवेटिव्स में आई तेजी ने रिजर्व बैंक को इसके लिए पोर्टफोलियो व प्रावधान तय करने पर मजबूर कर दिया है। विश्व मौद्रिक बाजार में आए उतार–चढ़ाव और बैंकों के डेरिवेटिव्स पोर्टफोलियो ने नियामक को कुछ निजी व विदेशी बैंकों के करार की जांच को जरूरी बना दिया है। हालांकि जांच में पता चला कि बैंकों ने घाटे से बचाव के लिए उपयुक्त प्रावधान कायम किए हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से जारी हाल के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि बैंकों ने गारंटी में भी काफी वृद्धि दर्ज की है। यह बढ़ोतरी
63 फीसदी की दर से 16,988 करोड़ रुपये की रही, जबकि जून 2006 तक यह आंकड़ा 10,424 करोड़ रुपये का था। इसमें भारतीय बैंकों की विदेशों में स्थित शाखाओं की ओर से किए गए व्यापार को भी शामिल किया गया है। निजी क्षेत्र के बैंक के कार्यकारी निदेशक ने बताया कि भारतीय बैंकों के विदेशों में कारोबार की बात करें, तो इसमें भी काफी वृद्धि दर्ज की गई है। यह बढ़ोतरी 40 फीसदी की दर से हुई है। यह वृद्धि भारतीय कंपनियों के वैश्विक विस्तार की वजह से संभव हो पाई है।
यही नहीं
, बैंक अपने कुछ खास ग्राहकों के लिए गारंटी को बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है। इनमें लोन गारंटी और एडवांस पेमेंट गारंटी शामिल है। गौरतलब है कि कंपनियां विभिन्न देशों से बड़े पैमाने पर आयात–निर्यात करती हैं। ऐसे में मुद्रा जोखिम से बचने के लिए हेजिंग की जरूरत पड़ती है। यही वजह है कि डेरिवेटिव्स कारोबार में तेजी आई है। सच तो यह है कि पिछले एक साल के दौरान डेरिवेटिव्स बाजार में काफी तेजी आई है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, जून 2007 के अंत तक भारतीय बैंकों की ओर से 54 फीसदी कारोबार पांच देशों में किया गया। इनमें से अमेरिका में 22.6 फीसदी, ब्रिटेन में 16.1 फीसदी, सिंगापुर में 6.1 फीसदी, जर्मनी में 5 फीसदी और संयुक्त अरब अमीरात में 4.5 फीसदी का कारोबार किया गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकों के डेरिवेटिव्स में भागीदारी की बात करें, तो फ्रांस के बैंकों की हिस्सेदारी 26 फीसदी है। इसी तरह ब्रिटेन की 15.1 फीसदी, जर्मनी की 6.9 फीसदी और इंडोनेशिया की 4.4 फीसदी हिस्सेदारी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकों के गारंटी में वृद्धि की बात करें, तो इसमें अमेरिका सर्वाधिक 30.1 फीसदी के साथ पहले स्थान पर है। जबकि चीन की 9.7 फीसदी, स्विट्जरलैंड की बात करें, तो उसकी हिस्सेदारी 9.4 फीसदी, जर्मनी की हिस्सेदारी 8.7 और ब्रिटेन की हिस्सेदारी 5.4 फीसदी है।
विदेशी बैंक के एक अर्थशास्त्री ने बताया कि भारतीय बैंकों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकास की बात करें
, तो वह 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। यही नहीं, कई कंपनियां बैंकों से लोन लेकर विदेशों में अपने कारोबार का बड़े पैमाने पर विस्तार कर रही है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय बैंकों की साख बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि बैंकों की ओर से कंपनियों को सामान्य कारोबार के लिए गारंटी प्रदान की जाती है। सच तो यह है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ते कारोबार की वजह से ऐसा संभव हो पाया है। ऐसे में वित्तीय व मौद्रिक संस्थाओं को भी इस दिशा में सार्थक कदम उठाने होंगे।