उच्चतम न्यायालय ने उधारी खातों को धोखाधड़ी वाले घोषित करने से पहले कर्ज लेने वालों का पक्ष सुने जाने का आदेश दिया है। इससे बैंकों द्वारा धोखाधड़ी वाले खाते घोषित किए गए कई मामले फिर से खुल सकते हैं, जो खाते इस वर्गीकरण के तहत आएंगे। बैंकरों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि खातों पर अंतिम फैसले के पहले उच्चतम न्यायालय के फैसले के मुताबिक प्रक्रिया का पालन करना होगा।
इसमें मामले स्वतः ही फिर से नहीं खुलेंगे। इस वर्गीकरण के तहत आने वाले कर्ज लेने वालों को बैंक से संपर्क करना होगा। उसके बाद बैंक जरूरी कदम उठाएंगे, जिससे कि शीर्ष न्यायालय के फैसले के अनुरूप कदम उठाए जा सकें।
बैंकरों के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के आदेश का असर 2 स्तर पर पड़ने की संभावना है। पहला- जिन खातों को धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में घोषित किया जा चुका है, वे फिर से मामले की सुनवाई के लिए बैंक से संपर्क कर सकते हैं। ये मामले ऐसे होंगे, जिन पर फैसला किया जा चुका है।
दूसरी श्रेणी में ऐसे मामले होंगे, जिसमें आदेश के मुताबिक प्रक्रिया पूरी की गई है, लेकिन कर्ज लेने वाले बैंक के फैसले को चुनौती दे सकते हैं, जिससे मामले लंबा खिंचेंगे।
बहरहाल बैंकरों का कहना है कि इस फैसले से किसी खाते को धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया तय हो सकेगी और किसी खाते को धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में वर्गीकृत करने का फैसला कठिन हो सकता है।
हालांकि बैंकरों का कहना है कि न्यायालय का यह फैसला किसी भी तरह से खातों को धोखाधड़ी वाले खाते घोषित करने से नहीं रोकेगा। नाम न दिए जाने की शर्त पर एक बैंकर ने कहा, ‘यह फैसला केवल प्रक्रिया का पालन करने को लेकर है। अगर धोखाखड़ी की गई है तो बैंकों को उसे धोखाधड़ी वाला खाता घोषित करने के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’
कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि बैंकों ने किसी मामले को धोखाधड़ी घोषित किया है और अगर उसे उसी तरह से उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है तो बैंक उन मामलों में नए कदम उठा सकते हैं, जो फैसले के मुताबिक हो।
धीर ऐंड धीर एसोसिएट में एसोसिएट पार्टनर आशीष प्यासी ने कहा, ‘परिपत्र को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला माना गया है। ऐसे में जिन मामलों में बैंकों ने किसी खाते को धोखाधड़ी वाला खाता घोषित किया है और उसमें सुनवाई नहीं की गई है तो यह संभव है कि प्रभावित लोग बैंकों के फैसले को चुनौती दे सकते हैं।’
शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी में पार्टनर वीणा शिवरामकृष्णन ने कहा, ‘वित्तीय संस्थान सामान्यतया उधारी लेने वालों को अपना पक्ष रखने का अवसर देते हैं, उसके बाद ही उन्हें इरादतन चूककर्ता, फ्रॉड, नॉन-कोऑपरेटिव आदि घोषित करते हैं।’
उनके मुताबिक शीर्ष न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिए रिजर्व बैंक के नियम में किसी संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि यह सामान्य नियम और समता का सिद्धांत है।
कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत कहता है कि किसी फैसले पर पहुंचने के पहले दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए।