डेरिवेटिव लेन-देन में मार्क-टु-मार्केट नुकसान उठाने वाली कंपनियों की सूची अस्पष्ट होने के कारण बैंक अब अपने कॉर्पोरेट बैंकिंग विभाग से उधार लेने वालों के बही-खातों की जांच करने को कह रहे हैं।
इसके अतिरिक्त बैंक विदेशी मुद्रा में निवेश से संबंधित विस्तृत जानकारी भी प्राप्त करने के प्रयास में जुटा है।एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा इस कवायद को मुख्यत: छोटे और मझोले उद्योगों पर केंद्रित किया जा रहा है जिन्होंने या तो विदेश से फंड जुटाया है या जिन्होंने अपने विदेशी ग्राहकों को पिछले तीन-चार वर्षों में माल की सुपुर्दगी की है। यही वह समय था जब जटिल डेरिवेटिव सौदों की शुरुआत भारत में हुई थी।
इस श्रेणी के भीतर बैंक उन कंपनियों को अलग रख रहे हैं जिनकी आय 30-40 करोड़ रुपये से लेकर 100 करोड़ रुपये है और जो इस सीमा के ऊपर हैं।निजी क्षेत्र के बैंक के एक अधिकारी ने कहा, ‘कम आय वाली कंपनियों को ज्यादा जोखिम है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में होने वाले परिवर्तन का सामना करने की उनकी क्षमता सीमित है।’
एक तरफ जहां बैंकर चौथी तिमाही के परिणामों का इंतजार करे हैं ताकि वे अनिश्चित देनदारियों में छुपी संख्याओं की तलाश की शुरुआत कर सकें वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट उधार देने वाली शाखाओं को भी सतर्क कर दिया गया है कि वे उधार लेने वालों से खास तौर से विदेशी मुद्राओं और डेरिवेटिव में किए गए निवेश के प्रकार की विस्तृत जानकारी लें।
बैंकरों ने कहा कि हाल में आई डैरिवेटिव मामलों की बाढ़ ने उन्हें और अधिक सतर्क बना दिया है और विदेशी बैंक, जो जटिल डेरिवेटिव उत्पादों को भारतीय ग्राहकों को स्थानीय बैंकों को मध्यस्थ बनाते हुए बेचते फिर रहे थे, भी आकर्षक विदेशी निवेश उपकरण जबरन नहीं दे रहे थे।
कई कंपनियां डेरिवेटिव मामले में बैंकों को अदालत तक घसीट ले गई हैं। डेरिवेटिव वास्तव में वित्तीय उपकरण हैं जिनके मूल्य अंतर्निहित परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाले परिवर्तन के अनुसार बदलते रहते हैं। कंपनियां वायदा, फॉरवर्ड, विकल्प और स्वाप जैसे डेरिवेटिव करारों के माध्यम से मुद्रा और ब्याज दर जोखिमों की हेजिंग करती हैं।डेरिवेटिव संबंधी विवादों में अधिकांशत: नई पीढ़ी के बैंक जैसे आईसीआईसीआई बैंक, ऐक्सिस बैंक, कोटक महिन्द्रा बैंक और यस बैंक शामिल हैं।
आईसीआईसीआई बैंक और कोटक महिन्द्रा बैंक ने अपने चौथी तिमाही के परिणामों का खुलासा नहीं किया है। ऐक्सिस बैंक ने अपने परिणामों की घोषणा में कहा था कि मार्च के अंत तक 188 डेरिवेटिव लेन-देन को नहीं निपटाया जा सका है और उसे कुल 673.5 करोड़ रुपये का मार्क-टु-मार्केट नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।