भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की इंप्लॉई स्टॉक पर्चेज स्कीम (ईएसपीएस) को मिली ठंडी प्रतिक्रिया ने बैंक के कान खड़े कर दिए हैं।
मजबूर होकर एसबीआई ने फैसला किया है कि योजना में एक साल की लॉक इन अवधि को खत्म कर दिया जाए। अपने राइट्स इश्यू से करीब 17000 करोड़ रुपये जुटाने के बाद देश के इस सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक ने अपने कर्मचारियों को शेयर बेचने की योजना बनाई है।
ये शेयर 1590 रुपये प्रति शेयर की दाम पर दिए जाएंगे। बैंक के राइट्स इश्यू का दाम भी यही था।ईएसपीएस योजना के तहत शेयर खरीदने के लिए एक कर्मचारी की योग्यता कंपनी में उसकी हैसियत पर निर्भर करती है। वैसे यह सीमा 20 शेयर से शुरू होती है और अधिकतम 1500 शेयरों तक जाती है। एसबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि योजना को लेकर कर्मचारियों ने कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है।
शेयर खरीदने के लिए 1590 रुपये प्रति शेयर का ऑफर बिल्कुल बाजार कीमत के बराबर है। ऐसे में लॉक इन अवधि के साथ शेयर खरीदने का कोई मतलब ही नहीं है, जब बाजार में उसी कीमत पर शेयर मौजूद हैं और वह भी बिना इस शर्त के उन्हे निश्चित समय तक रखना ही होगा। इस सारे मसले पर सोच विचार के बाद एसबीआई ने पूंजी बाजार की नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से गुजारिश की कि लॉक इन अवधि की शर्त को हटा दिया जाए।
सेबी के पास यह अधिकार था और उसने इसे हटा दिया। सोमवार को बंबई स्टॉक एक्सचेंज में एसबीआई के शेयर 3.47 की बढ़त के साथ 1,741 रुपये पर बंद हुए जबकि एक महीने पहले तक उसके शेयरों का दाम 1600 रुपये प्रति शेयर पर था।
ईएसपीएस योजना के तहत बैंक के 86 लाख शेयरों का आवंटन किया जाएगा, हालांकि राइट्स इश्यू के मुकाबले यह काफी कम है। इस योजना के तहत 15 मार्च से 15 अप्रैल तक शेयर खरीदे जा सकते थे लेकिन ठंडे अपेक्षित परिणाम न निकलते देख एसबीआई ने योजना की आखिरी तारीख को और 15 दिन के लिए बढ़ा दिया।
कर्मचारियों की ठंडी प्रतिक्रिया के पीछे कुछ और भी वजहें हैं। बाजार की पतली हालत देखते हुए कर्मचारी इस बात को लेकर पसोपेश में हैं कि अगले एक साल में शेयरों की कीमत का क्या होगा। उधर कनिष्ठ और मध्यम दर्जे के प्रबंध कर्मचारी जो शेयर खरीद सकते हैं, के पास नकद पैसा नहीं है और उन्हें लोन लेना पड़ेगा। मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि बैंक के कर्मचारियों को बैंक शेयर खरीदने के लिए लोन लेने पर पाबंदी है।
एसबीआई में प्रबंधक रह चुके एक वित्त कंपनी के अधिकारी का कहना है कि कर्मचारी दूसरे बैंकों से उधार ले सकते हैं या पर्सनल लोन ले सकते हैं जिसके इस्तेमाल पर नजर नहीं रखी जाती लेकिन मौजूदा बाजार कीमत और भविष्य में कीमतों की अनिश्चितता को देखते हुए लगता है कि यह योजना ज्यादा कर्मचारियों को रिझा नहीं पाएगी।