प्रवर्तन निदेशालय प्राधिकारी द्वारा द्वारा आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्याधिकारी चंदा कोचर को क्लीन चिट देने और ईडी द्वारा उनकी संपत्ति की कुर्की को खारिज करने के आदेश से दिवाला एवं दिवालियापन संहिता की धारा 12ए के तहत दायर कर्ज पुर्नांकलन की याचिका में वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को मदद मिलेगी।
कंपनी के प्रवर्तक वेणुगोपाल धूत ने कहा कि उनका आवेदन वर्तमान में लेनदारों की समिति (सीओसी) के पास लंबित है और समिति जल्द ही उनके प्रस्ताव पर मतदान करेगी। धूत ने कहा, ‘पीएमएलए द्वारा कोचर की संपत्ति की कुर्की को खारिज करने और क्लीन चिट देने के बाद भारतीय बैंक आराम से मतदान कर पाएंगे, क्योंकि अब एक बड़ी चिंता दूर हो गई है।’
ईडी के दावे को खारिज करते हुए प्राधिकारी ने कहा कि वह कोचर के इस दावे से सहमत है कि वीडियोकॉन को दिया गया 300 करोड़ रुपये का कर्ज आईसीआईसीआई बैंक की क्रेडिट पॉलिसी और पहले की प्रथाओं के अनुरूप था। इसके अलावा, ऋण आईसीआईसीआई बैंक को चुकाया भी गया था। आदेश में कहा गया, ‘वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (वीआईईएल) के ऋण खाते को कभी एनपीए घोषित नहीं किया गया था।’
6 नवंबर को जारी आदेश में कहा गया कि वी.एन. धूत द्वारा चंदा कोचर के पति दीपक कोचर द्वारा प्रबंधित न्यूपावर रिन्यूएबल में 64 करोड़ रुपये का निवेश सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से किसी भी तरह से जुड़ा हुआ नहीं है, जिसमें आईसीआईसीआई द्वारा 300 करोड़ रुपये का लोन जारी करने की बात कही गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘एफआईआर में कोई दूसरे अवैध आरोप नहीं थे जिससे यह साबित हो सके कि वीआईईएल (वीआईएल की एक सहायक इकाई) को 300 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी देने के अलावा अन्य अनुचित लाभ लिए गए हैं। वहीं, प्रतिवादियों द्वारा विधिवत रूप से यह स्थापित किया गया कि सुप्रीम कंपनी द्वारा एनआरएल को 64 करोड़ रुपये देना वास्तविक कारोबारी लेनदेन था।’
आदेश में कहा गया कि अगर सीबीआई या ईडी द्वारा इस तरह का खुलासा किया गया था तो उस समय आईसीआईसीआई बैंक के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई द्वारा कथित अनुसूचित अपराधों के लिए पूछताछ नहीं की गई थी।
वीआईएल के प्रवर्तकों का कहना है कि यह आदेश उन्हें वीडियोकॉन को वापस स्थिर हालत में लाने में मदद करेगा। वीडियोकॉन 40,000 करोड़ रुपये के ऋण चूक के मामले में मुंबई की अदालतों में दिवालियापन सबंधी कार्यवाही का सामना कर रही है।
ईडी को नहीं सौंपी गई श्रीकृष्णा रिपोर्ट:
प्रवर्तन निदेशालय प्राधिकरण के आदेश में कहा गया कि चंदा कोचर के खिलाफ आईसीआईसीआई बैंक की ओर से जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट का जांच एजेंसी को नहीं सौंपी गई। आदेश में कहा गया है कि आईसीआईसीआई बैंक ने 18 फरवरी 2019 को अपने पत्राचार में ‘क्लाइंट-अटॉर्नी विशेषाधिकार’ का दावा किया है। इसलिए उक्त जांच एक गैर-न्यायिक जांच थी और ईडी ने रिपोर्ट को दस्तावेज पर आधारित नहीं माना। कोचर ने कहा कि उन्होंने बैंक द्वारा प्राप्त उक्त आंतरिक रिपोर्ट में लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया है और वहीं से संबंधित निष्कर्ष आया है। कोचर को बैंक बोर्ड से निकाले जाने का आधार श्रीकृष्णा रिपोर्ट ही थी।