भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा की गई रेपो रेट (वह दर जिससे रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है) कटौती पर अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि उक्त कटौती से केंद्रीय बैंक ने संकेत दिए हैं कि अब उसका लक्ष्य मुद्रास्फीति घटाने की जगह विकास दर पर केंद्रित हो गया है।
उन्हें उम्मीद है कि ब्याज दरों में और कटौती हो सकती है।ज्ञातव्य है सोमवार को चार साल बाद पहली बार आरबीआई ने रेपो रेट में एक फीसदी की कटौती की घोषणा की थी। इससे पहले वह बैंकिंग सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिए सीआरआर में कुल ढाई फीसदी की कटौती कर चुकी है।
रेटिंग और एडवाइजरी फर्म स्टैंडर्ड एंड पूअर्स के अर्थशास्त्री सुहिर गोकर्ण ने बताया कि यह कटौती सीधे आरबीआई की बदली प्राथमिकताओं का संकेत है। अब उसे मुद्रास्फीति की जगह विकास दर की चिंता है।
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इस बारे में संसद को बताया कि भले ही इस समय मुद्रास्फीति आरबीआई के कंफर्ट लेवल 5 फीसदी से अधिक 11.44 फीसदी पर है, लेकिन कीमतों के स्तर पर हो रहा मुवमेंट मुद्रास्फीति के वर्तमान मोमेंटम का संकेत दे रहा है। उन्हें अगले दो माह में खुदरा मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में कमी आने की उम्मीद है।
गोकर्ण कहते हैं कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट में उस समय तक कटौती कर सकती है जब तक विकास दर में इसका सकारात्मक संकेत हैं। एशिया इकनॉमिक्स के वाइस प्रेसिडेंट गोल्डमैन सैक्स के तुषार पोद्दार रेपो रेट की दरों में कटौती बाजार की उम्मीदों के अनुसार ही है। हमें 2009 की पहली तिमाही में रेपो रेट में 1.5 फीसदी की उम्मीद है। इस कटौती का दायरा बड़ा व्यापक है। अब हम अपनी दरों पर विचार कर रहे हैं।