भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) देश के कई बैंकों के विलय के पक्ष में है। आरबीआई ने इस संबंध में सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा है।
इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि बीते सप्ताह आरबीआई और वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारियों की दिल्ली में एक बैठक हुई थी। उसमें विलय के प्रस्तावों पर विचार-विमर्श किया गया था।
आरबीआई देश के बड़े सार्वजनिक बैंकों के साथ सरकार द्वारा संचालित छोटे और निजी बैंकों के विलय के पक्ष में है। सूत्रों का कहना है कि आरबीआई ने पिछले दो तीन साल की निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर विलय के लिए संभावित साझेदारों की पहचान की है।
हालांकि, आरबीआई की राय है कि एकीकरण के लिए बैंक स्वेच्छा से आगे आएं। नियामकों ने सुझाया है कि अगर इस तरह का विलय संभव नहीं हो तो फिर सरकार को आगे आना चाहिए।सूत्रों ने बताया कि बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 45 में बैंकों के जबरन विलय का प्रावधान है। इस प्रावधान का इस्तेमाल कर आरबीआई सरकार से परामर्श कर दो बैंकों के बीच विलय करवा सकता है।
उल्लेखनीय है कि नरसिंहन कमेटी ने बैंकिंग क्षेत्र में विलय का सुझाव प्रस्तुत किया था। विदित है कि इस सुझाव को ध्यान में रखते हुए निजी क्षेत्र के बैंकों ने विलय की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया लेकिन सरकारी बैंकों की तरफ से कुछ भी देखने को नहीं मिला, जबकि देश के 28 बैंकों में उनकी हिस्सेदारी है।
सरकार चाहती है कि निदेशक मंडल ही बैंकों के विलय के बारे में फैसला करे लेकिन अभी तक किसी भी प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार-विमर्श नहीं किया गया है। यूनियनों और राजनीतिक दबावों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया है। विलय को लेकर खींच-तान का एक मामला भारतीय स्टेट बैंक के साथ स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के बीच देखने को मिला है। कुछ राजनीतिक नेताओं ने इस विलय का विरोध किया। विधि मंत्रालय ने कानूनी आपत्ति की है।
बैंक से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कई मामलों में बड़े और छोटे निजी बैंकों का विलय बहुत आसान नहीं है। अदालत और शेयरधारकों से विलय के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने में काफी वक्त लग जाता है।