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औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस के पक्ष में नहीं आरबीआई!

Last Updated- December 12, 2022 | 12:58 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) संभवत: बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के पक्ष में नहीं है। नवंबर 2020 में बैंक के एक आंतरिक कार्यसमूह ने औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने का सुझाव दिया था। उम्मीद की जा रही है कि बैंकिंग नियामक अगले 10 दिन में जारी होने वाली अंतिम रिपोर्ट में इस विषय पर अपना रुख साफ कर सकता है।
शीर्ष स्तर के एक सूत्र ने बताया कि बैंकिंग लाइसेंस के मामले में यथास्थिति बनी रहने की संभावना है।

माना जा रहा है कि केंद्रीय बैंक अपने उस रुख पर अडिग रहेगा, जिसमें किसी ऐसे औद्योगिक समूह की की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) को बैंकिंग लाइसेंस नहीं दिया जाएगा, जिसकी कुल परिसंपत्ति 5,000 करोड़ रुपये या ज्यादा है और समूह की कुल संपत्ति तथा सकल आय में गैर वित्तीय कारोबार की हिस्सेदारी 40 फीसदी या अधिक है। बैंकिंग लाइसेंस के लिए औद्योगिक घराने से जुड़ी एनबीएफसी को बैंकिंग लाइसेंस चाहिए तो वित्तीय सेवा कारोबार में उसकी पैठ अधिक होनी चाहिए।
केंद्रीय बैंक नकद आरक्षित अनुपात और सांविधिक तरलता अनुपात की आवश्यकता और प्राथमिक क्षेत्र के लक्ष्यों को पूरा करने वाली इकाइयों के लिए पुराने नियमन की जगह नए नियम अपना सकता है। यह बड़ा बदलाव होगा क्योंकि आईसीआईसीआई लिमिटेड-आईसीआईसीआई बैंक के रिवर्स विलय में या आईडीएफसी को आईडीएफसी फस्र्ट बैंक में बदलने के समय इस तरह की रियायत नहीं दी गई थी। हालांकि आईडीबीआई लिमिटेड और आईडीबीआई बैंक के रिवर्स विलय का मामला अपवाद है।

निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए स्वामित्व दिशानिर्देश और कॉर्पोरेट ढांचे की समीक्षा के लिए आंतरिक कार्यसमूह गठित किए जाने के बाद बड़े औद्योगिक घरानों में बैंकिंग लाइसेंस मिलने की उम्मीद जग गई थी। यह रिपोर्ट 20 नवंबर, 2020 को सौंपी गई थी और इसमें औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के गुण-दोष का भी उल्लेख किया गया था। आरबीआई की अंतिम रिपोर्ट में परिचालन का विस्तृत ब्योरा हो सकता है मगर बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस जारी नहीं करने का नीतिगत रुख बरकरार रह सकता है।
एक अन्य सूत्र ने बताया कि आंतरिक कार्यसमूह ने निजी बैंकों के नियामकीय प्रारूप आदि जैसे विभिन्न मसलों पर अपनी राय दी है, लेकिन बैंकिंग लाइसेंस चर्चा में बना रहा। आंतरिक कार्यसमूह गठित करने का मकसद अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर तक लाने के लिए देश की आर्थिक वृद्घि का एजेंडा तय करना था। इसमें बैंकिंग क्षेत्र द्वारा वैश्विक वित्तीय प्रणाली में व्यापक भूमिका अदा किए जाने पर जोर दिया गया है।

कार्यसमूह की रिपोर्ट आने के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनरों और डिप्टी गवर्नरों ने बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस जारी करने के मसले पर चिंता जाहिर की है। आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास ने भी स्पष्टï किया कि आंतरिक कार्यसमूह की रिपोर्ट को केंद्रीय बैंक का नजरिया नहीं माना जाना चाहिए। बड़े कारोबारी घराने 1993 में उदार लाइसेंसिंग नीति के बाद से ही बैंकिंग क्षेत्र में उतरना चाह रहे हैं।

First Published - September 17, 2021 | 9:46 PM IST

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