कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियों (सीआईसी) पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों का पालन करने वाली बड़ी कंपनियों को परखने के बाद ही उन्हें बैंकिंग लाइसेंस दिए जाएंगे। बैंकिंग नियामक ने 13 अगस्त, 2020 को जारी परिपत्र में कहा था कि किसी एक समूह में सीआईसी के स्तरों की संख्या 2 होगी और इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी से कोई लेना-देना नहीं होगा। परिपत्र के अनुसार मार्च 2023 तक इसका अनुपालन करना होगा। इस बारे में एक सूत्र ने कहा, ‘बैंकों में शेयरधारिता संरचना काफी सरल है, लेकिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के मामले में ऐसा नहीं है। ऐसी स्थिति नहीं बनने दी जा सकती, जिसमें बैंक शेयरधारिता मामले में एनबीएफसी की तरह बर्ताव करने लगे। लीवरेज और क्रॉस-ओनरशिप दोनों को समझने के लिए मालिकाना हक की संरचना को पूरी तरह समझना होगा।’ इस बात का भी जिक्र किया गया था कि बैंक लाइसेंस का आवंटन सीआईसी के निरीक्षण के बाद आरबीआई के रुख परनिर्भर करेगा।
दूसरी तरफ गैर-परिचालित वित्तीय होल्डिंग कंपनी को लाइसेंस दिए जाने से पहले सभी तरह के दूसरे दबावों से बचाकर रखना होगा। अगस्त परिपत्र में व्यवस्थागत रूप से महत्त्वपूर्ण सीआईसी की परिभाषा समाप्त कर दी गई थी और और ‘एग्जेंप्टेड सीआईसी’ का प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया था। आरबीआई का मानना था कि ‘एग्जेंप्टेड सीआईसी’ से ऐसी कंपनियों को बेवजह की विश्वसनीयता मिल रही थी। सीआईसी के संबंध में आरबीआई के परिपत्र में कहा गया था कि एक सीआईसी से दूसरे सीआईसी में रकम का हस्तांतरण होने पर अगर रकम नियंत्रित कोष के 10 प्रतिशत से अधिक होती है तो इसे दूसरी सीआईसी की शुद्ध परिसंपत्तियों से समायोजित किया जाएगा। इससे पहले ऐसा कोर्ई प्रावधान नहीं था।
यह नियामक के परिपत्र जारी होने की तारीख से लागू होना है, लेकिन आरबीआई ने कहा था कि मौजूदा इकाइयों को अपनी कारोबार संरचना की पहचान करनी होगी और 31 मार्च, 2023 तक इस दिशानिर्देश का पालन करना होगा। निजी बैंकों में पूंजी का स्रोत एक बड़ा विषय था। आरबीआई ने कहा था कि यह पूंजी धाीरे-धीरे आनी चाहिए और बैंकों से कर्ज के रूप में इसका अंबार नहीं लगाया जा सकता। एक सूत्र ने कहा,’ऐसा नहीं होने पर प्रवर्तक इकाई या निवेशकों से आने वाला दबाव बैंकिंग क्षेत्र को भी प्रभावित करेगा।’