भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आज बैंकों को सभी पंजीकृत गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ संयुक्त उधारी (को-लेंडिग) की अनुमति दे दी, जिनमें हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां (एचएफसी) भी शामिल हैं। इसका मकसद संयुक्त उधारी मॉडल पर अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों को सस्ता कर्ज मुहैया कराना है, जिनकी पहुंच बैंकिंग तक कम या नहीं है।
इसके पहले बैंकों को जमा न लेने वाली अहम वित्त कंपनियों के साथ मिलकर कर्ज देने की अनुमति थी। पहले की योजना को अब केंद्रीय बैंक ने पुनरीक्षित किया है, जिससे कि कर्ज देने वाली संस्थाओं को परिचालन संबंधी व्यापक लचीलापन मिल सके।
संयुक्त उधारी मॉडल के तहत बैंकों को अपने बही खातों में बैक-टु-बैक आधार पर व्यक्तिगत ऋणों का हिस्सा रखना होगा, जबकि एनबीएफसी को अपने बही खाजों में व्यक्तिगत ऋणों का न्यूनतम 20 प्रतिशत बरकरार रखने की जरूरत होगी।
बैंक और एनबीएफसी दोनों को ही संयुक्त उधारी मॉडल में प्रवेश करने के लिए लिए बोर्ड से स्वीकृत नीतियां बनानी होंगी, जिसके आधार पर कर्ज देने वाली दो संस्थाओं के बीच समझौता होगा। इस समझौते में व्यवस्था की सेवा और शर्तें, साझेदार संस्थानों के चयन का दायरा, विशेष उत्पाद और परिचालन का क्षेत्र के साथ दायित्वों के बंदवारे से जुड़े प्रावधान के साथ कस्टमर इंटरफेस और सुरक्षा संबंधी मसले शामिल होंगे। दो संस्थानों के बीच हुए समझौते में एनबीएफसी द्वारा मूल रूप से दिए गए व्यक्तिगत कर्ज में बैंकों की अनिवार्य हिस्सेदारी या कुछ विशेष कर्ज के मामलों को खारिज करने का प्रावधान हो सकता है।
रिजर्व बैंक ने यह उल्लेख किया है कि बैंकों को उन एनबीएफसी के साथ संयुक्त उधारी की व्यवस्था की अनुमति नहीं होगी, जो बैंक के प्रमोटर समूह से जुड़े हैं। इस मॉडल के तहत बैंक कर्ज में अपनी हिस्सेदारी को लेकर प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का दावा कर सकते हैं, जो शर्तों पर निर्भर होगा।
रिजर्व बैंक ने कहा, ‘एनबीएफसी ग्राहकों के लिए इंटरफेस के एकल माध्यम होंगे और उधारी लेने वाले के साथ ऋण समझौता कर सकेंगे, जिसमें साफतौर पर इस व्यवस्था का ब्योरा और एनबीएफसी व बैंकों की भूमिका और दायित्व के बारे में उल्लेख होगा।’
