ऋण की मांग में तेज बढ़ोतरी, त्योहारों के मौसम में ज्यादा खपत और विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री की वजह से बैंकिंग व्यवस्था में नकदी तेजी से कम हो रही है।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति का परिचालन लक्ष्य, भारित औसत कॉल दर इस समय 30 अप्रैल, 2019 के बाद के सर्वोच्च स्तर पर है। इससे व्यवस्था में नकदी में गिरावट का पता चलता है। ज्यादा साफ शब्दों में कहें तो भारित औसत कॉल दर और रीपो रेट के बीच स्प्रेड 7 फरवरी, 2019 के बाद के उच्च स्तर पर है।
7 फरवरी, 2018 वह दिन है, जब गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व में रिजर्व बैंक ने मौद्रिक सुगमता के चक्र की शुरुआत की थी। इसके बाद रीपो रेट में 250 आधार अंक की कमी आई और यह कोविड-19 संकट के दौरान 4 प्रतिशत के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। रिजर्व बैंक ने 4 मई, 2022 से रीपो दर बढ़ाना शुरू किया और इसमें कुल 190 आधार अंक की बढ़ोतरी हो चुकी है।
मंगलवार को भारित औसत कॉल दर 6.11 प्रतिशत पर बंद हुई, जो रीपो दर से 21 आधार अंक ज्यादा है और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) 6.15 प्रतिशत से बहुत दूर नहीं है। रिजर्व बैंक की विभिन्न ब्याज दरों में सबसे ज्यादा दर एमएसएफ की होती है। जब बैंक एमएसएफ से उधारी लेते हैं तो वे केंद्रीय बैंक को फंड के लिए सबसे ज्यादा ब्याज देते हैं।
आईएफए ग्लोबल के सीईओ अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘बहरहाल बैंकों के पास नकदी की कमी है और वे एमएफएस का मार्ग तलाश रहे हैं। सोमवार को बैंकों ने रिजर्व बैंक के एमएसएफ विंडो से 21,000 करोड़ रुपये लिए।
इससे बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की कमी को लेकर दबाव का संकेत मिलता है। रिजर्व बैंक की एफएक्स बिक्री, त्योहारी मौसम में नकदी की मांग, सरकार के उच्च नकदी संतुलन की वजह से नकदी की मौजूदा कमी हुई है।’
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक सोमवार को केंद्रीय बैंक ने बैंकिंग व्यवस्था में 8,764.43 करोड़ रुपये डाले हैं। धन डालने का मतलब यह है कि नकदी की कमी है। सितंबर महीने में रिजर्व बैक ने रोजाना औसतन करीब 91,000 करोड़ रुपये नकदी खींच ली थी। सितंबर में ही नकदी की कमी की स्थिति आ गई और ऐसा 3 साल में पहली बार हुआ।
अक्टूबर में पहली बार सोमवार को व्यवस्था घाटे में गई। इसके पहले रिजर्व बैंक ने औसतन हर रोज 90,000 करोड़ रुपये खींचे। ऐक्सिस बैंक के कोषागार के प्रमुख नीरज गंभीर ने कहा, ‘इंटरबैंक लिक्विडिटी तेजी से कम हो रही है और शुरुआती अनुमान की तुलना में यह तेज है। लेकिन यह मुख्य रूप से सरकार के बैलेंस के कारण है।
अगर आप रिजर्व बैंक से साथ सरकार की नकदी को देखें तो कुल मिलाकर व्यवस्थागत नकदी अधिशेष अभी भी तर्कसंगत है।’ उन्होंने कहा, ‘थोड़ा उतार चढ़ाव हो सकता है, क्योंकि यह सरकार के व्यय और रिजर्व बैंक के एफएक्स हस्तक्षेप पर निर्भर है। व्यवस्था में नकदी घाटे और अधिशेष में घूम सकती है।’
बैंकों के मामले में देखें तो नकदी की कमी होने पर जमा दर बढ़ाने को लेकर दबाव पड़ता है, जिससे ज्यादा ब्याज पर धन जुटाया जा सके। रिजर्व बैंक के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 23 सितंबर को बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज की वृद्धि दर 9 साल के उच्चतम स्तर 16.4 प्रतिशत पर है। वहीं जमा दर पीछे है और इसकी वृद्धि 9.2 प्रतिशत पर है।
बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘अगर आप ग्राहकों को दिए गए कुल कर्ज को देखें तो उसकी तुलना में बैंकों में होने वाला जमा बहुत कम है। इसका मतलब यह है कि विदेशी मुद्रा सहित धन बाहर निकल रहा है और आखिरकार इसका असर बैंक के बैलेंस शीट पर पड़ रहा है।’