बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटेलमेंट के हाल में ही जारी किये गये आकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2007 की अंतिम तिमाही के दौरान 1120 अरब का लोन देकर भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ओर अपना एक्सपोजर तेजी से बढ़ाया है।
बैकिंग विश्लेषक का कहना है कि यूरोप और अमेरिका में अपने भारतीय सहयोगी बैंकों को दिये गये कर्ज में बढ़ोत्तरी वैश्विक मंदी के दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर इन बैंकों केभरोसे को दिखाता है।
पूरे विश्व में सेंट्रल बैंक के कामकाज पर नजर रखने वाले बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटेलमेंट के मुताबिक एशिया में 1120 अरब के कर्ज के साथ भारत पहले स्थान पर है जबकि चीन (1000 अरब रूपये)और कोरिया(680 अरब रूपये) के साथ भारत से पीछे रहे।
भारत पर फॉरेन क्लेम जिसमें क्रासबार्डर क्लेम के साथ लोकल क्लेम भी शामिल हैं जो नागरिकों को विदेशी ऑफिसों केघरेलू बैंक के द्वारा दिये जाते हैं,में भी बढ़ोत्तरी हुई है। यह वित्तीय वर्ष 2007 की तीसरी और चौथी तिमाही केदौरान 168,087 मिलियन डॉलर से 195,939 मिलियन डॉलर हो गया।
जेनेवा स्थित एक बैंकिंग विश्लेषक का कहना है कि बीआईएस के आकड़ें भारतीय बैंकों की मजबूत और भरोसेमंद स्थित का भरोसा दिलाते हैं। उनका कहना यह भी रहा कि भारत के बैंक अमेरिकी और यूरोपीय बैंकों की तरह मंदी का सामना नहीं कर रहे हैं। जबकि सबक्राइम संकट के कारण अमेरिकी और यूरोपीय बैंकों में क्रेडिट का संकट हो गया है।
अगर विदेशी बैंकों केभारतीय बैंकों और वित्त्तीय संस्थानों पर किये गये क्लेम पर नजर डाली जाए तो सिर्फ 15 देश ही ऐसे मिलते हैं जिन्हे तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान सर्वाधिक एक्सपोजर मिला है। इस क्रम में सबसे बड़े ऋणदाता ब्रिटिश बैंक रहे जिनके एक्सपोजर में 7.317 बिलियन डॉलर की बढ़त हुई। उसके बाद अमेरिकी,नीदरलैंड, जर्मन,स्विस और जापानी बैंकों का स्थान रहा।
विकासशील देशों पर फॉरेन क्लेम का कुल फॉरेन क्लेम में 38 फीसदी हिस्सा है। यूरोप(160 बिलियन डॉलर) और एशिया (110 बिलियन डॉलर ) के साथ सबसे ज्यादा बढ़े।इसके साथ ही एक्सटरनेल क्लेम भी पूरे विश्व में 1.1 ट्रिलियन तक बढ़ा जिसका पीछे प्रमुख कारण यूरो और यूके के बैंकों की बढ़ी हुई लेंडिंग रही।बीआईएस के आकड़ें अभी तक डोमिनेंट रहे यूएस डॉलर के क्लेम में तेजी से गिरावट को दिखाते हैं। नये क्लेम में यरो क्लेम पहले की तुलना में दोगुने हो गये हैं।
विश्लेषक का कहना है कि विदेशी बैंकों केभारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों को दिये जा रहे एक्सपोजर को बनाये रखने के लिये जरुरी है कि भारत में बढ़ती महंगाई,सॉफ्टवेयर सेवाओं और इकोनोमिक फंडामेंटल पर कड़ी निगाह रखी जाए।