निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2023 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान आय में मजबूत वृद्धि दर्ज किए जाने की संभावना है। उनकी आय को मजबूत ऋण वृद्धि, मार्जिन में बढ़ोतरी, ऋण लागत में कमी, और कम प्रावधान संबंधित खर्च से मदद मिलेगी।
हालांकि व्यवसायों में निवेश की वजह से परिचालन लागत ऊंची बनी रह सकती है। साथ ही, तीसरी तिमाही में बैंकों की अन्य आय ज्यादा प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि वित्तीय प्रदर्शन मजबूत बने रहने की संभावना है। ब्लूमबर्ग अनुमानों के अनुसार, निजी बैंक अपने शुद्ध लाभ में सालाना आधार पर 25 प्रतिशत तक का इजाफा दर्ज कर सकते हैं। तिमाही आधार पर, इन बैंकों का शुद्ध लाभ अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में करीब 9 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
इसके अलावा, अनुमानों से पता चलता है कि इन ऋणदाताओं की शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) सालाना आधार पर करीब 18 प्रतिशत और तिमाही आधार पर 5 प्रतिशत बढ़ सकती है।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने तीसरी तिमाही में एनआईआई में सालाना आधार पर 24 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया है। बैंकिंग व्यवस्था में ऋण वृद्धि दशक के ऊंचे स्तर को छू रही है, लेकिन जमा वृद्धि में नरमी आई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, बैंक ऋण 16 दिसंबर को समाप्त पखवाड़े में 17.4 प्रतिशत तक बढ़ा। जमाएं समान अवधि के दौरान 9.4 प्रतिशत तक बढ़ीं। भविष्य में, उपभोक्ता मांग में सुधार, सरकारी खर्च में तेजी के बाद निजी क्षेत्र के पूंजीगत खर्च में वृद्धि से ऋण के लिए मांग मजबूत बनी रह सकती है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के विश्लेषकों ने अनुमान जताया है कि भारतीय बैंकों की ऋण वृद्धि तिमाही आधार पर 4 प्रतिशत तक रह सकती है। मोतीलाल ओसवाल ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान व्यवस्थित ऋणों में 15 प्रतिशत की सालाना वृद्धि का अनुमान जताया है। एचडीएफसी बैंक समेत निजी क्षेत्र के कई बैंकों ने शानदार प्रदर्शन किया है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि जमा वृद्धि ऊंचे दायरे में रही है, क्योंकि बैंकों ने सितंबर से दरें बढ़ाई हैं। जमा दरों में वृद्धि का प्रभाव बैंक मार्जिन पर सीमित हो सकता है, क्योंकि उन्हें बढ़ते ब्याज दर परिवेश में अपने उधारी बहीखाते में बदलाव का लाभ मिला है।
कई बड़े बैंकों के ऋण पोर्टफोलियो बाहरी मानकों से जुड़े हुए हैं। बैंकों में कोटक महिंद्रा की 53 प्रतिशत अग्रिमें बाहरी मानकों से जुड़ी हुई हैं, जिसके बाद एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक के लिए यह आंकड़ा 41-41 प्रतिशत और एसबीआई के लिए 34 प्रतिशत है।
इंडसइंड और एसबीआई की ऐसे ऋणों में ज्यादा भागीदारी है जो एमसीएलआर आधारित हैं और उनके लिए यह अनुपात 45 प्रतिशत और 41 प्रतिशत है।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘जमा दरें पिछले कुछ महीनों के दौरान तेजी से बढ़ी हैं, जिससे देनदारी में इजाफा हुआ है।
हालांकि हमें तीसरी तिमाही में सकारात्मक बदलाव की संभावना है, लेकिन जमाओं की लागत में वृद्धि वित्त वर्ष 2024 में मार्जिन राह का आकलन करने के लिए मुख्य कारक होगी। हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2024 में मार्जिन पर कुछ दबाव पड़ सकता है।’
जहां तक परिसंपत्ति गुणवत्ता का सवाल है, बैंक अच्छी स्थिति में हैं। गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) पिछले 10 साल में सबसे कम हैं। भविष्य में, विश्लेषकों को बैंकों के फंसे कर्ज सभी सेगमेंटों में नियंत्रित रहने की संभावना है, जिससे प्रावधान संबंधित बोझ भी घटेगा।