आरबीआई की इस घोषणा के बाद की सभी प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंक अपने बेस ब्रांच से 15 कि.मी. की दूरी के भीतर व्यापारिक केंद्रों के जरिए सूदूर इलाके के ग्राहकों को बैंकिंग सुविधा मुहैया करवा सकती हैं।
साथ ही या फिर अपना कारोबार कर सकती हैं,अब ई-कियॉस्क सुदूर इलाके जहां बैंक बिना शाखा खोले अपना कारोबार कर सकती हो।) जैसी योजनाएं खटाई में पड़ती दिख रही हैं। इस घोषणा के तुरंत बाद कर्नाटक में ,ऐसी सुविधा मुहैया करवाने वाले(बिजनेस कॉरसपोंडेंट) कॉमेट टेक्ोलॉजी ने हरियाणा और कर्नाटक में अपने 300 नए ब्रांच खोलने की योजना को टाल दिया है।
गौरतलब है कि यह कंपनी वहां के गांवों में ग्रामीण व्यापार केंद्र चलाती है,जिसमें कंप्यूटर कोर्स से लेकर मोबाइल रिचार्ज और रेलवे टिकट दिलवाने का काम भी करती है। लेकिन आरबीआई की इस घोषणा के बाद कि अब हरेक ऐसे सेंटर अपने बेस ब्रांच से महज 15 कि .मी. पर होंगें,कंपनी में हलचल सी मच गई है।
हालांकि इस बाबत कंपनियों और गैर सरकारी संगठनों को कोई दिक्कत नही है,पर जो बात उनके लिए परेशानी का सबब है, वो यह है कि नए दिशानिर्देश के अनुसार ऐसे सेंटर बेस ब्रांच से 15 कि.मी. की दूरी से ज्यादा नही होने चाहिए। जबकि महानगरों में यह दूरी 5 कि.मी. से ज्यादा नही होनी चाहिए। लेकिन इससे कारोबार पर असर पड़ने के चलते कॉमेट जैसी कंपनियां हाथ पीछे खींच रही है।
इस बाबत भारतीय बैंक संगठन (आईबीए)का कहना है कि सरकार का इरादा है कि ज्यादा से ज्यादा रिमोट एरिया के लोगों तक यह सुविधा पहुंचाई जाए। लेकिन बेहद दुर्गम इलाके के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है, लिहाजा, ऐसे सेंटरों को कारोबार करने में दिक्कत पेश आएगी। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको के लिए प्रतियोगिता खासी कठिन हो जाएगी।
इस संबंध में एक गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी के सीईओ विजय महाजन कहते हैं, कि आरबीआई के दिशानिर्देशों में तीन कदमों के चलते वित्तीय समावेश पर बुरा असर पड़ेगा। पहला यह कि बिजनेस कारेसपोंडेटों को एनजीओ,डाकघरों तक सीमित कर देना। दूसरा यह कि इन कॉरेसपोंडेंटों को उनकी फीस बैंक चुकाएगी न की लोग, और तीसरी एवं आखिरी चीज जो वित्तीय समावेश के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी कि ऐसे सेंटरों को लक्षित गांव या शहरों से 15 कि.मी. की दूरी पर होना।
आरबीआई के चीफ जनरल मैनेजर दिशानिर्देशों को सही करार देते हुए कहते हैं कि जरूरी एहतियात के लिए ऐसा करना लाजिमी था। जहां तक दूरियां और अन्य दिक्कतों का सवाल है तो कॉरेसपोंडेंट जिला स्तर पर एक क्रेडिट कमिटी स्थापित कर समस्याओं को दूर कर सकती है।