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मंदी के बावजूद बेहतर रणनीति से बन सकती है राह

Last Updated- December 09, 2022 | 10:32 PM IST

भारत के लिए स्टैंडर्ड चार्टर्ड की योजनाओं में मंदी के बावजूद कोई बदलाव नहीं आया है।


हालांकि इसे भी बाजार सुधरने का इंतजार है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड के मुख्य कार्याधिकारी जसपाल बिंद्रा से अनिरुद्ध लस्कर और सिद्धार्थ ने इस बाबत बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:


वैश्विक मंदी के मद्देनजर भारत को आप कैसे देखते हैं?


दुनिया भर में अभी भी कारोबार धीमा चल रहा है। हर स्तर पर जो भी सुधार की प्रक्रिया चलेगी उसमें कर्ज का संकट पैदा हो रहा है। हमारा मानना है कि यूरोपीय बाजार के हालात और बिगड़ेंगे।

हालांकि दुनिया के और देशों के मुकाबले एशिया की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर ही रहेगी। पश्चिमी देशों के बैंकों की तरह एशियाई बैंक बहुत ज्यादा कर्ज के संकट से नहीं जूझ रहे हैं। यहां एक और अच्छी बात यह है कि नियामक और सरकार भी बहुत जल्दी कदम उठाते हैं।

एशियाई बैंकों की तरह ही भारतीय बैंकों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि उनकी हैसियत नहीं है बल्कि बाजार के हालात बेहतर नहीं है। पश्चिमी देशों से पूर्वी देशों की ओर आर्थिक शक्ति का हस्तांतरण होगा।

सभी अर्थव्यवस्थाओं के  बीच मंदी का सबसे कम असर आप कहां देखते हैं?

अफ्रीका में इसका सबसे कम असर होगा। एशियाई अर्थव्यवस्था में सिंगापुर ज्यादा प्रभावित होगा क्योंकि पश्चिमी देशों पर इसकी निर्भरता ज्यादा है। यूरोप और अमेरिका जैसी स्थिति तो चीन और भारत में भी नहीं होगी।

एशिया और अफ्रीका पर ध्यान केंद्रित करने से क्या फर्क पड़ा है, रणनीति में कोई बदलाव किया जाएगा?

हमलोग इस संकट से इसलिए भी बचे रहे क्योंकि हमने पूरे बाजार में अपना परिसंपत्ति जमा अनुपात 100 फीसदी से भी कम रखा। पश्चिमी देशों के बैंक इसे 150-250 प्रतिशत से भी ज्यादा रखते हैं। हमें यह अच्छी तरह से मालूम है कि किस क्षेत्र में मुनाफा कमाया जा सकता है और किसमें नहीं।

स्टैंडर्ड चार्टर्ड इंडिया के साथ कैसा अनुभव रहा?

जब आप किसी असुरक्षित कारोबार में होते हैं तो सुरक्षित कर्ज के मुकाबले इसमें दबाव ज्यादा होता है। व्यक्तिगत लोन, के्रडिट कार्ड के जरिए बैंक बहुत ज्यादा मार्जिन पाते हैं इसी वजह से इसकारोबार का आकर्षण ज्यादा है।

इसमें घाटा ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता। हां यह जरूर है कि जोखिम प्रबंधन की क्षमता मजूबत रहे।

आपकी रणनीति क्या होगी और 2010 की पहली छमाही तक कैसे हालात रहेंगे?

हम अभी धैर्य बरतना चाहते हैं। अतिरिक्त क्षमता का विकास करना हमेशा अच्छा होता है लेकिन अभी हम मौजूदा कारोबार को और मजूबत बनाने पर ही जोर देंगे।

हम नए ग्राहकों के लिए कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि मौजूदा ग्राहकों से ही अपना संबंध मजबूत बना रहे हैं।

इंडिया डिपोजिटरी रिसीट इश्यू (आईडीआर) के बारे में आपकी क्या योजनाएं हैं?

भारत में आईडीआर के मौके से हमें काफी खुशी होगी लेकिन हम अभी सही समय का इंतजार कर रहे हैं।

अभी के मुकाबले बाजार को ज्यादा स्थायी होना होगा। टैक्स और तिमाही समीक्षा जैसी चीजें हमारे लिए थोड़ी मुश्किल हैं और इस पर फिर से विचार करना होगा।

विदेशी बैंकों के  लिए बने मानदंडों की आरबीआई की समीक्षा को लेकर आपको क्या उम्मीदें हैं?

मैं आश्वस्त नहीं हूं कि आरबीआई अप्रैल में उदारीकरण के लिए कोई स्पष्ट रोडमैप लेकर आएगी या नहीं। इसके लिए उस वक्त तक सरकार का बनना जरूरी है। अगर ऐसा होगा तो उसका स्वागत है।


दुनिया भर में ब्याज दरों में कमी आई है तो उनको भी ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए।

ब्रांच विस्तार या अधिग्रहण में से किस पर ज्यादा जोर देंगे?

हम इन दोनों तरह के कदमों से खुश होंगे। वैसे हमारा ध्यान ज्यादा ब्रांच विस्तार पर होगा। इसके अलावा हम मौजूदा खिलाड़ियों के अधिग्रहण पर भी ध्यान देंगे।

First Published - January 20, 2009 | 9:09 PM IST

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