इसमें र्कोई शक नहीं कि जब दो साल पहले शेयर बाजार में तेजी का दौर चल रहा था तो उस वक्त शेयर ब्रोकिंग कंपनियों की मौज थी, लेकिन वर्तमान में वैश्विक आर्थिक मंदी और सबप्राइम संकट ने उनको भी झुरझुरी कर दी है।
उद्योग जगत के खिलाड़ियों ने बताया कि बाजार में मंदी और खुदरा निवेशकों को बाजार से कोई फायदा नहीं मिलने के कारण बहुत सी छोटी-बड़ी ब्रोकिंग कंपनियां विस्ताकर करके अपनी शाखाएं खोलने की योजना धीमी करने जा रही हैं।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले की स्थिति बिल्कुल अलग थी। उस वक्त शेयर बाजार सातवें आसमान पर था। यही वजह है कि
ज्यादातर छोटी और मझोली किस्म की ब्रोकरेज फर्मों अपनी दुकान फैलाने की जुगत में लगी हुई थीं।
बहरहाल, कारोबार की तादाद में आई जबर्दस्त गिरावट से फर्मों की आमदनी को काफी झटका लग सकता है। हालांकि बड़ी फर्मों के लिए यह बात पूरी तरह सच नहीं बैठती है। उल्लेखनीय है कि हाल में सेंसेक्स में 20 फीसदी की जबर्दस्त गिरावट आ चुकी है जिससे शेयर बाजार से जुड़ी ब्रोकर फर्मों की स्थिति पर असर पड़ा है। गिरावट सिर्फ नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में ही नहीं बीएसआई में भी आई है। वायदा कारोबार तो एकदम सिकुड़ गया है।
जहां दिसंबर में यह कारोबार 96,144 करोड़ रुपये था, वह घट कर 40,644.51 करोड़ रुपये रह गया।
ठीक इसी तरह, नकदी कारोबार में भी गिरावट आई और बंबई स्टॉक एक्सचेंज में नकदी कारोबार 9315.64 करोड़ रुपये की तुलना में घटकर 5818.71 करोड़ रुपये पर रह गया।
इंडिया इन्फोलाइन के उपाध्यक्ष हर्षद आप्टे ने बताया, ‘छोटी फर्मों के बारे में कहा जाए तो निस्संदेह उनकी शाखाओं को धक्का लगेगा। खासकर उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है, जो राजस्व के लिए किसी सट्टेबाज पर निर्भर रहते हैं। लेकिन जहां तक बड़े फर्मों की बात है, जिनके पास आय के ढेरों साधन हैं, उन पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।’
एंजेल ब्रोकिंग के प्रबंध निदेशक दिनेश ठक्कर ने बताया, ‘जहां तक बड़ीे फर्मों की बात है तो वे आईपीओ और प्राइवेट प्लेसमेंट से उगाही कर लेती हैं।
लिहाजा, उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। लेकिन जो मार्जिन कारोबार के लिए आंतरिक उपायों पर निर्भर हैं, खासकर छोटी और मझोली ब्रोकिंग फर्मों उन्हें नुकसान पहुंच सकता है।’
बहरहाल, विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी और शेयर बाजार में जबर्दस्त गिरावट की वजह से बाजार से आमदनी के मामले में ब्रोकिंग फर्मों के सामने सवाल जरूर खड़े होंगे। ज्यादातर ब्रोकिंग फर्मों के लिए तीसरी तिमाही खुशियों की सौगात लेकर आई थी। इसका मुख्य कारण शेयर बाजार में तेजी बने रहना था, लेकिन चौथी तिमाही में आय में आई गिरावट से पूरी तस्वीर ही बदल गई। एक अनुमान के मुताबिक चौथी तिमाही में उन्हें लगभग 30 फीसदी की मार झेलनी पड़ी है।
इसमें शक नहीं कि शेयर बाजार में जिस तरह की स्थिति है, उससे कई छोटे और मझोले ब्रोकिंग खिलाड़ियों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ सकती हैं। संभव है कि उन्हें बड़े खिलाड़ियों को अपनी दुकान बेचनी पड़ जाए। लेकिन जिनके पास अधिक से अधिक मार्जिन मौजूद है या फिर जो ब्रोकिंग पर निर्भर नहीं हैं वे ही बाजार में टिके रह पाएंगे।
