बैंकरों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)को यह साफ कर दिया है कि वे जमा दरों में कमी लाने में सक्षम नहीं हैं।
दरअसल उन्हें इस बात का भी डर है कि जमर्कत्ता बैंकों के बजाय लघु बचत के दूसरे जरिए मसलन डाक जमा और सार्वजनिक भविष्य निधि को तरजीह दे सकते हैं।
पहले की एक ऋण नीति की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक के दौरान बैंक प्रमुखों ने आरबीआई टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे डिप्टी गर्वनर राकेश मोहन से कहा है कि इस वक्त वे फंड की अतिरिक्त मांग से जूझ रहे हैं और दूसरे स्रोतों भी बिल्कुल खत्म हो चुके हैं।
ऐसे में उनको जमाओं को आक र्षित करने की जरूरत है। रेपो, रिवर्स रेपो और नगद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में कटौती होने के साथ ही बैंकों ने भी अपनी जमा दरों में 300 आधार अंकों (बीपीएस)तक की कमी की थी।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने मोटी जमाराशियों पर अब एक साल के लिए 7.5 फीसदी ब्याज दर देने की बात कही है। इसके अलावा ऋण नीति में 1.5 प्रतिशत की कमी भी की है।
इस बैठक में शामिल हुए एक बैंकर का कहना था, ‘अगर सरकारी स्कीमों के तहत 8 प्रतिशत ब्याज दर दिया जा रहा है तो बैंक अपना ब्याज दर कम नहीं कर सकते।
अगर हम ब्याज दरों में आगे भी कटौती करते रहे तो हम लोगों को बैंक जमा के लिए आकर्षित नहीं करा पाएंगे।