क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंकों के साथ जुड़ा विवाद अब सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुंच गया है।
दरअसल न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका को आज सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। इस फैसले में आयोग ने बैंकों को आदेश दिया था कि वे क्रेडिट कार्ड ग्राहकों से किसी भी सूरत में 30 फीसद से ज्यादा ब्याज नहीं ले सकते।
भारतीय बैंक संघ, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, हाँगकाँग शांघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन (एचएसबीसी) और सिटीबैंक इस आदेश के खिलाफ पहले ही अपील कर चुके हैं। बैंकों के मुताबिक वे इस मामले में भारतीय रिवर्ज बैंक के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं और ब्याज की दर तय करने का अधिकार भी केवल रिजर्व बैंक को ही है।
इसलिए आयोग को सीधे बैंकों के नाम कोई आदेश जारी करने का न्यायिक अधिकार नहीं है। इसके उलट उपभोक्ताओं के संगठन ‘आवाज’ ने न्यायमूर्ति बी एन अग्रवाल की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने तर्क दिया कि आयोग इस बात को पकड़ ही नहीं सका कि बैंक कई मामलों में 90 फीसद से भी ज्यादा ब्याज ले रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति समय पर भुगतान नहीं कर पाता है, तो उस पर लगाए गए ब्याज और छिपे हुए शुल्कों को मिला लिया जाए, तो ब्याज की दर तकरीबन 90 फीसद होती है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि मनी लेंडर्स एक्ट के तहत असुरक्षित वित्त के लिए भी ब्याज की दर 20 फीसद से कम तय की गई है। बैंकों ने भी असुरक्षित वित्त के लिए ब्याज की आधार दर 10 से 15.5 फीसद ही रखी है। सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का निर्णय लिया है।