निजी बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की सीमा अगले 15 साल की अवधि में बढ़ाकर मौजूदा 15 फीसदी से बढ़ाकर 26 फीसदी करने और गैर-प्रवर्तक हिस्सेदारी मौजूदा 10 फीसदी से 15 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा गया है। बैंकिंग नियमन अधिनियम (1949) में संशोधनों के बाद बड़ी कंपनियों और औद्योगिक घरानों को बैंकों का मालिक बनने की मंजूरी दी जा सकती है।
प्रवर्तक पांच साल की लॉक-इन अवधि के बाद कभी भी अपनी हिस्सेदारी 26 फीसदी से नीचे ला सकते हैं। पांच से 15 साल के बीच मध्यवर्ती उप-लक्ष्य पूरे करने पड़ सकते हैं। लेकिन लाइसेंस जारी करते समय प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी कम करने की समय-सारणी दे सकते हैं। केंद्रीय बैंक इसका परीक्षण करेगा और मंजूरी देगा।
एक अन्य अहम प्रस्ताव यह है कि अच्छी चल रहीं बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंकों में तब्दील किया जा सकता है। यह प्रस्ताव उन एनबीएफसी के लिए है, जिनके पास 50,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति है और जो एक दशक से अधिक पुरानी हैं। ये भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आंतरिक समिति की तरफ से दी गई सिफारिशों में से कुछ हैं। इस समिति का गठन देश में निजी बैंकों में स्वामित्व की सीमा के दिशानिर्देशों और कॉरपोरेट ढांचे की समीक्षा के लिए किया गया है। इस रिपोर्ट पर सुझाव 15 जनवरी, 2021 तक देने हैं।
यह समिति असल में विभिन्न दिशानिर्देशों के तालमेल के लिए बनाई गई है। लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के दिशानिर्देशों में लंबी अवधि में 26 फीसदी हिस्सेदारी बनाए रखने की मंजूरी दी गई है। इनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और लोकल एरिया बैंकों को 26 फीसदी के साथ शुरुआत की मंजूरी दी गई है, बशर्ते कि उस कंपनी में नियामकीय जरूरतों के कारण पहले से ही मिश्रित हिस्सेदारी है। समिति ने कहा, ‘बैंक की चुकता वोटिंग इक्विटी हिस्सेदारी पूंजी की 26 फीसदी तक अधिक शेयरधारिता को मंजूरी देने से प्रवर्तक अधिक पूंजी लगा सकेंगे, जो बैंकों के विस्तार के लिए अहम है और मुश्किल दौर में बैंक को बचाने में मददगार है।’
वैश्विक तरीकों को मद्देनजर रखते हुए समिति का मानना है कि अगर भारत के निजी बैंकों को बढ़ाना है तो उन्हें भारत और अन्य जगहों पर उपलब्ध पूंजी को हासिल करने की मंजूरी दी जाए और बहुत कम निवेश सीमा नहीं थोपी जाए।
समिति का यह विचार पी जे नायक समिति की सिफारिशों से लिया गया है, जो प्रवर्तकों की 25 फीसदी हिस्सेदारी के पक्ष में थी। नायक समिति ने कहा था कि प्रवर्तकों की कम हिस्सेदारी से प्रबंधन और शेयरधारकों के बीच तालमेल कमजोर होगा और उससे बैंक डगमगा सकते हैं।
समिति की प्रमुख सिफारिशों का एक पहलू यह भी है कि भुगतान बैंक को लघु वित्त बैंक में तब्दील करने के लिए आवश्यक समय पांच साल से घटाकर तीन साल किया जाए। लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंकों की सूचीबद्धता के मापदंडों में भी फेरबदल का सुझाव दिया गया है।
कयास लगाए जा रहे हैं कि समिति के सुुझावों को वित्त वर्ष 2022 के केंद्रीय बजट में अमलीजामा पहनाया जा सकता है।
वर्ष 1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के करीब 40 साल बाद भारतीय कंपनियों के फिर से वाणिज्यिक बैंकिंग में उतरने की जमीन तैयार हो गई है।
