भारतीय रिजर्व बैंक ने बगैर हेज वाली विदेशी मुद्रा निवेश या कर्ज के लिए निर्देश जारी करते हुए आज बैंकों के लिए पूंजी और प्रावधान की जरूरतें तय कर दीं। केंद्रीय बैंक का निर्देश उस समय आया है, जब रुपया डॉलर के मुकाबले नए निचले स्तर पर आ गया है और बिना हेजिंग के विदेशी मुद्राओं में कर्ज लेने वाली फर्मों पर ज्यादा नजर रखी जा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपये में इस साल अभी तक 10 फीसदी की नरमी आ चुकी है।
आरबीआई ने कहा, ‘विदेशी मुद्रा विनिमय दरों में भारी उतार-चढ़ाव के दौरान उन इकाइयों को भारी नुकसान हो सकता है जिन्होंने विदेशी मुद्रा में अपने निवेश/कर्ज को हेज नहीं किया है। इस नुकसान की वजह से बैंकों से लिया कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है और भुगतान में चूक की आशंका बढ़ सकती है, जिससे पूरे बैंकिंग तंत्र की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।’ आरबीआई ने 20 से 80 आधार अंक तक प्रावधान की जरूरत तय की है।
उसने कहा कि अगर बैंकों को ब्याज और मूल्यह्रास से पहले आय में 15 से 30 फीसदी तक नुकसान होने की आशंका होती है तो ऋणदाताओं को प्रावधान 20 आधार अंक बढ़ाना होगा यानी 20 आधार अंक ज्यादा पूंजी अलग रखनी होगी।
इसी तरह 30 से 50 फीसदी नुकसान की आशंका होने पर बैंकों को 40 आधार अंक अधिक रकम अलग रखनी होगी और 50 से 75 फीसदी नुकसान की आशंका में 60 आधार अंक ज्यादा प्रावधान करना होगा। 75 फीसदी से अधिक संभावित नुकसान की स्थिति में 80 आधार अंक ज्यादा प्रावधान करने की जरूरत होगी।
हालांकि वृद्धिशील पूंजी की जरूरत तभी होगी, जब बिना हेज वाले विदेशी मुद्रा निवेश पर 75 फीसदी से अधिक नुकसान की संभावना होगी। इस मामले में वृद्धिशील पूंजी की जरूरत जोखिम भारांश में 25 फीसदी बढ़ जाएगी। आरबीआई ने कहा कि बैंकों को कम से कम सालाना आधार पर सभी इकाइयों के विदेशी मुद्रा निवेश/कर्ज का निर्धारण करना चाहिए।