भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज कहा कि बैंकों को कर्ज के लिए जमानत पर निर्भर रहने के बजाय नकद प्रवाह आधारित ऋण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
नैशनल काउंसिल फार अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की ओर से आयोजित इन्वेस्टर एजूकेशन पर आयोजित एक वेबिनॉर को संबोधित करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, ‘ऋण व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात, कर्ज तक पहुंच और कर्ज की लागत में सुधार करने के लिए जमानत से जुड़ी सुरक्षा पर निर्भरता कम करने और नकद प्रवाह आधारित उधारी पर निर्भरता बढ़ाने की जरूरत है।’
दास के मुताबिक इस सिलसिले में क्रेडिट ब्यूरो और प्रस्तावित सार्वजनिक ऋण पंजी (पीसीआर) फ्रेमवर्क से कर्ज का प्रवाह सुधारा जा सकता है और देश में कर्ज की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सकता है।
डिजिटल वित्तीय सेवाओं में सुधार के लिए रिजर्व बैंक ने प्रायोगिक परियोजनाओं सहित कुछ कदम उठाए हैं, जिससे मार्च 2021 तक कम से कम हर राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के एक जिले में 100 प्रतिशत डिजिटल सक्षमता सुनिश्चित की जा सके। गवर्नन ने कहा कि इस पहल में 42 जिलों को शामिल किया गया है।
रिजर्व बैंक ने देश में डिजिटल शिक्षा में सुधार के लिए 5सी अप्रोच स्वीकार किया है। अपने संबोधन में गवर्नर ने कहा कि इन सी में कंटेंट (इसमें स्कूलों कॉलेजों के पाठ्यक्रम और प्रतिष्ठानों के प्रशिक्षण में इसे शामिल करना भी शामिल है), मध्यस्थों की क्षमता (कैपेसिटी), जो वित्तीय सेवाएं व शिक्षा प्रदान करते हैं, वित्तीय शिक्षा के लिए उचित संचार (कम्युनिकेशन) रणनीत के माध्यम से समुदाय (कम्युनिटी) आधारित मॉडल को बढ़ावा देना, विभिन्न हिस्सेदारों के बीच तालमेल (कोलाबरेशन) बढ़ाना शामिल है।
सरकार और रिजर्व बैंक की पहल से वित्तीय समावेशन में बहुत भारी सुधार हुआ है। कार्यबल में शामिल हो रही नई पीढ़ी में जागरूकता बढ़ी है और सोशल मीडिया पर सक्रियता ने शहरी और ग्रामीण के बीच खाईं को कम किया है और तकनीक नीतिगत पहल को आकार दे रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि आने वाले दिनों में देश के सभी इलाकों में बैंक खातों की सार्वभौम पहुंच होगी। उन्होंने कहा कि सतत कर्ज, निवेश, बीमा और पेंशन उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच पर ध्यान देने की जरूरत है, जिससे मांग के मुताबिक सेवाएं मिल सकें और ग्राहकों की सुरक्षा बढ़ाई जा सके। उन्होंने कहा, ‘हमारे जैसे जनसंख्या वाले बड़े देश में वित्तीय शिक्षा सिर्फ वित्तीय क्षेत्र के नियामकों की जिम्मेदारी नहीं हो सकती है।’ दास ने कहा, ‘शैक्षणिक संस्थान, उद्योग संगठन और अन्य हिस्सेदार जैसे प्रबुद्ध मंडल और शोध संस्थानों को आगे आकर अपने कंधों पर जिम्मेदारी लेनी होगी, जिससे कि उचित जागरूकता अभियान चलाकर वित्तीय शिक्षा बढ़ाई जा सके।’
