केंद्र सरकार ने भले ही पहले किसानों को दी गई 71,600 करोड़ रुपये की कर्ज माफी का पूरा भार खुद वहन करने की बात कही हो, लेकिन हकीकत इससे अलग है।
सरकारी बैंकों को इस लोन माफी का करीब 15 फीसदी यानी लगभग 11,000 करोड़ रुपये का भार खुद ही वहन करना होगा। शेष 60,000 करोड़ रुपये का बोझ आम बजट 2008-09 में की गई घोषणा के अनुसार खुद सरकार वहन करेगी।
बैंकों को जो इस अतिरिक्त 11,000 करोड रुपये का भार उठाना होगा, यह उस मद की रकम है जिसमें लागू न होने वाली दर, पेनल दर और अन्य शुल्क शामिल हैं। एक मोटे अनुमान के आधार पर कुल लोन माफी में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी 45 फीसदी या 32,000 करोड़ रुपये है। व्यावसायिक बैंक की हिस्सेदारी 26,000 करोड़(36 फीसदी) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की हिस्सेदारी 13,000 करोड़ रुपये(18 फीसदी) है। अतिरिक्त एक्सपोजर में भी इन बैंकों की हिस्सेदारी इसी अनुपात में है। हालांकि इन अतिरिक्त खर्चों को लेकर बैंक खुद भी आश्चर्यचकित नहीं है।
फरवरी में जब लोन माफी की घोषणा की गई, उसी समय बैंकों ने इन खर्चों का अनुमान लगा लिया था। एक बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की मालिक सरकार ही है। वे उनके निर्णय को मानने के लिए बाध्य है। हालांकि वे मानते हैं कि कृषकों को थोड़ा लाभ देने से बैंकों को उन्हें नए कर्ज देने का मौका भी मिलेगा। लगभग 4 करोड़ किसानों को इस योजना से लाभ मिलेगा। छोटे और मझोले किसानों को मिलाकर 90 फीसदी का इस ऋण माफी योजना का लाभ होगा।