उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीपीएमटी की तैयारी कर रहे आजमगढ़ के गांव संजरपुर के छात्र आरिफ को दिल्ली में हुए बम धमाकों की साजिश में शामिल होने के आरोप में सोमवार को गिरफ्तार किया गया। बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान भी संजरपुर गांव के ही सैफ को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था। आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में देशभर में पकड़े गए दर्जनों युवक कहीं न कहीं के छात्र हैं। इस सारे घटनाक्रम की एक तस्वीर यह भी है कि तमाम धन–दौलत कमाने के बाद और सारी सुख–सुविधा जुटा लेने के बाद भी आजादी के 61 सालों में आजमगढ़ में एक भी मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज या व्यावसायिक कोर्स कराने वाली संस्था नहीं खुल सकी है। निजी क्षेत्र में खुले आजमगढ़ के सबसे बड़े तालीमी इदारे मौलाना शिबली कॉलेज में इकलौता प्रोफेशनल कोर्स विधि का चलता है। हर हमले के पहले इंटरनेट हैक कर सूचना दे देने वाले आजमगढ़ के आंतकी को मास्टर माइंड समझने वालों को शायद पता न होगा कि पूरे जिले के इकलौते कंप्यूटर इंस्टीटयूट में बिजली न आने के चलते कोर्सों में दाखिला लेने वाले कुछ दर्जन ही बचे हैं। लगभग 40 लाख की आबादी वाले इस जिले में मुसलमानों की शिक्षा मदरसों के ही भरोसे है। पूरे आजमगढ़ में 1200 के करीब छोटे–बड़े मदरसे हैं, जिनमें 42000 के करीब छात्र पढ़ने जाते हैं। आजमगढ़ के बीनापारा गांव के सबसे नामी इस्लाही मदरसे के ज्यादातर छात्र तो विदेशों में प्रोफेसर के ओहदे तक पहुंच चुके हैं। इस्लाही मदरसे के इसरार अहमद मलेशिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, तो असरार अहमद वर्ल्ड बैंक में ऊंचे ओहदे पर हैं।
यह वही बीनापारा गांव है, जहां के आतंकी अब्दुल बशर को सिमी ने हमले की जमीन तैयार करने की जिमेदारी सौंपी थी। बशर अभी पुलिस की हिरासत में है और उसका नार्को टेस्ट हो चुका है।
संजरपुर गांव का दौरा करने पर बिानेस स्टैंडर्ड संवाददाता को लोगों ने बताया कि जिले में अच्छी पढ़ाई का कोई साधन न होने के चलते ही लड़के बाहर जाते हैं। गांव के बाशिंदे और दिल्ली मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार सैफ के पिता शादाब अहमद ने कहा कि उनका बेटा हाईस्कूल पास करने के बाद अंग्रेजी सीखने दिल्ली गया था, जिससे उसे विदेश जाने में आसानी हो सके। कुछ ऐसा ही हाल जिले के बाकी गांवों का है, जहां के धनी लोगों के बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं। बिलारिया कस्बे के एक मदरसे में पढ़ने वाले जखामत अली ने बताया कि आजमगढ़ के मुस्लिमों के सामने मदरसे में बच्चों को पढ़ाना मजबूरी भी है। अली कहते हैं कि गरीबों अपने बच्चे इस लिए मदरसे भेजते हैं कि वहां फीस नहीं ली जाती है और एक समय भरपेट खाना मिलता है। अमीरों के पास कोई दूसरा चारा नहीं है, क्योंकि यहां कोई कॉलेज ही नहीं है। वहीं मुबारकपुर के मदरसा अल जामियातुल अशरफिया के प्रबंधन का कहना है कि उनके यहां प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक के कोर्स पढ़ाए जा रहे हैं। मगर रोजगारपरक कोर्स के बारे में पूछने पर यहां के शिक्षक भी बगलें झांकने लगे।
आजमगढ़ में तालीम के बारे में पूछने पर अलीगढ़ मूवमेंट फांउडेशन के चेयरमैन उमर शरीफ पीरजादा ने बताया कि मुसलमानों की बेहतरी का दावा करने वाले सियासी नेताओं ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नहीं किया है।