सरकार के मालिकाना वाले बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) ने सोमवार को 7.30 प्रतिशत कूपन दर पर 10 साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से 5,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी।
क्रिसिल द्वारा एएए रेटिंग वाले बीओबी की बॉन्ड पेशकश का बेस इश्यू साइज 2,000 करोड़ रुपये है और इसमें 3,000 करोड़ रुपये का ग्रीन शू ऑप्शन है। इस निर्गम को निवेशकों ने पूरी तरह सबस्क्राइब कर लिया है।
एक सरकारी बैंक के डीलर ने कहा कि 10 साल की सरकार की प्रतिभूतियों का यील्ड कम हुआ है। इसकी वजह से बीओबी का कट-ऑफ रेट, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से कम है। इस इश्युएंस की मजबूत मांग थी, जो इस तरह के साधन के लिए सामान्य बात है, क्योंकि पीएफ फंड दीर्घावधि बॉन्डों में निवेश को प्राथमिकता देते हैं।
उन्होंने कहा कि आगे के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड निर्गमों के लिए कट ऑफ रेट सरकारी बैंकों के मामले में 7.30 प्रतिशत से 7.35 प्रतिशत और निजी बैंकों के मामले में 7.35 प्रतिशत से 7.40 प्रतिशत रहने की संभावना है।
बैंकों, खासकर सरकारी बैंकों ने इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से धन जुटाने को तरजीह दी है। इसके पहले देश के सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक ने 15 साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से 7.36 प्रतिशत पर 2 किस्तों में 20,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। पहली किस्त में जून में 10,000 करोड़ रुपये जुटाए गए जबकि जुलाई में दूसरी किस्त में धन जुटाया।
इसके साथ ही केनरा बैंक ने 7.40 प्रतिशत कूपन दर पर 10 साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से 10,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं, वहीं बैंक ऑफ इंडिया ने 7.54 प्रतिशत पर 10 साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों से 5,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने इस माह की शुरुआत में 10 साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड जारी कर 811 करोड़ रुपये जुटाए हैं, जिसकी कूपन दर 7.8 प्रतिशत है। इश्यू का बेस साइज 500 करोड़ रुपये और ग्रीनशू ऑप्शन 2,500 करोड़ रुपये का था। कुल मिलाकर सरकारी बैंकों ने पिछले 2 महीने में इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से 35,811 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
बैंक के हिसाब से इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों के माध्यम से जुटाया गया धन आकर्षक है, क्योंकि इसमें वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) जैसी रिजर्व की नियामक जरूरतों से छूट होती है।
जमाओं के माध्यम से जुटाए गए धन में बैंकों को 4.5 प्रतिशत राशि सीआरआर के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखनी होती है और एसएलआर संबंधी बाध्यताएं पूरी करने के लिए करीब 18 प्रतिशत प्रतिभूतियों में निवेश करना होता है। वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड से मिला पूरा पैसा कर्ज के रूप में दिया जा सकता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड की न्यूनतम अवधि 7 साल होती है और बैंक इस प्रक्रिया से जुटाए गए धन का इस्तेमाल दीर्घावधि इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए कर्ज देने में करते हैं।