माइक्रोफाइनैंस श्रेणी में दबाव बढ़ने के कारण बैंक अपने कुछ गैर निष्पादित माइक्रोफाइनैंस पोर्टफोलियो को परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (एआरसी) को सौंपने पर विचार कर रहे हैं। इन पोर्टफोलियो का मूल्य कम है, लेकिन अगर सही कीमत पर इनकी बिक्री की जाए तो ये अधिग्रहण योग्य हो सकते हैं। खासकर ऐसी स्थिति में, जब पोर्टफोलियो की पेशकश पूर्ण नकदी आधार के बजाय कैश टु सिक्योरिटी रिसीट (एसआर) के आधार पर की जाए।
माइक्रोफाइनैंस सेक्टर पिछले कुछ महीनों से चुनौतियों और बाधाओं से गुजर रहा है। इसकी वजह से इस सेग्मेंट की परिसंपत्ति की गुणवत्ता में उल्लेखनीय गिरावट आई है। अनियंत्रित ऋण वृद्धि और ग्राहकों को एक से अधिक ऋण जारी करने के कारण माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र में दबाव बढ़ गया है। इसकी वजह से उधार लेने वाले बहुत ज्यादा कर्ज के बोझ में आ गए हैं।
प्रमुख बैंकों और छोटे कर्ज देने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में इस सेगमेंट के चूक में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। इसकी वजह से कुछ बैंकों ने दबाव कम करने के लिए खराब पोर्टफोलियो बेचना शुरू कर दिया है।
हाल में निजी क्षेत्र के कर्जदाता इंडसइंड बैंक ने 1,573 करोड़ रुपये के फंसे हुए सूक्ष्म ऋण को बेचने के एआरसी से बोली मांगी है, जो 10 लाख से ज्यादा खातों से जुड़े हैं। बैंक ने पूर्ण नकदी (100 फीसदी नकदी) के आधार पर इन संपत्तियों के अधिग्रहण में दिलचस्पी रखने वाली इकाइयों से बोली आमंत्रित की हैं। इसके लिए आरक्षित मूल्य 85 करोड़ रुपये रखा गया है, जिस पर बैंक के कुल बकाये के महज 5.04 फीसदी की वसूली ही हो पाएगी।
इसके पहले नवंबर में उज्जीवन स्माल फाइनैंस बैंक ने 270 करोड़ रुपये की गैर निष्पादित परिसंपत्ति बेचने के लिए रखी थी और कुछ माइक्रो बैंकिंग ऋण को बट्टे खाते में डाला था। इसके अलावा उत्कर्ष स्माॅल फाइनैंस बैंक ने कहा था कि वह 355 करोड़ रुपये की गैर निष्पादित माइक्रोफाइनैंस ऋण एआरसी को बेचने पर विचार कर रहा है। बैंक ने इस परिसंपत्ति के लिए आरक्षित मू्ल्य 52 करोड़ रुपये तय किया है, जिससे उसके कुल बकाये की 14.64 फीसदी रिकवरी होगी।
उद्योग के आंतरिक लोगों का कहना है कि माइक्रोफाइनैंस उद्योग में दबाव के बावजूद बैंकों द्वारा बिक्री के लिए रखे गए कर्ज की मांग हो सकती है, अगर सही मूल्य लगाया जाए। उनका मानना है कि अगर बैंक अपने बकाया बुक वैल्यू के 10 फीसदी पर अपना ऋण बेचते हैं तो संभावित खरीदारों की उसमें रुचि हो सकती है।
एक निजी क्षेत्र के एआरसी के मुख्य कार्याधिकारी ने कहा, ‘सही मूल्य पर हर परिसंपत्ति एआरसी के लिए महत्त्व रखता है। हालांकि, एमएफआई ऋण के मामले में वसूली की लागत ज्यादा है। ऐसे में कीमत बहुत तार्किक होना चाहिए, जो आदर्श रूप में कुल ऋण के एक अंक के फीसदी में हो सकती है। इसके अलावा अगर बैंक अपने कर्ज 100 फीसदी नकदी के आधार पर बेचने का विकल्प चुनते हैं तो एआरसी को धन एकत्र करने में आने वाली बड़ी लागत का बोझ भी उठाना पड़ेगा। अच्छा यह होगा कि कर्जदाता अपने इस पोर्टफोलियो को कैश-टु-एसआर आधार पर बेचने की कोशिश करें, क्योंकि यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद रहेगा।’
उन्होंने कहा कि अगर पूर्ण नकदी के आधार पर पेशकश की जाती है तो इसकी खरीद में दिलचस्पी कम होगी। हालांकि अगर माइक्रोफाइनैंस पोर्टफोलियो को कैश-टु-एसआर आधार पर बेचा जाता है तो हम इसके अधिग्रहण पर विचार कर सकते हैं।
ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (इंडिया) लिमिटेड के एमडी और सीईओ पल्लव महापात्र के मुताबिक दबाव बढ़ने के कारण बैंक अपने माइक्रोफाइनैंस पोर्टफोलियो का बोझ कम करना चाहते हैं, ऐसे में एआरसी तभी इन संपत्तियों के अधिग्रहण पर विचार करेंगी जब उन्हें सही मूल्य पर मिले और यह बकाया ऋण के 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो। उन्होंने कहा, ‘अगर बैंक इस कर्ज के संग्रह और वसूली की जिम्मेदारी लेते हैं तो इस पोर्टफोलियो की बिक्री की संभावना ज्यादा होगी क्योंकि एआरसी के पास ऐसे असुरक्षित ऋण की वसूली के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे का अभाव है। ऐसा कर्ज लेने वाले देश के दूरदराज इलाकों में रहते हैं। अगर एआरसी को इनके संग्रह की प्रक्रिया सौंपी जाती है तो वसूली किए जाने की संभावना तेजी से घट जाएगी।’
एआरसी को कॉरपोरेट कर्ज की वसूली की विशेषज्ञता है, लेकिन खुदरा ऋण वसूली के लिए उनके पास संसाधनों की कमी है। खुदरा ऋण वसूलने के लिए ज्यादातर एआरसी थर्ड पार्टी कलेक्शन एजेंटों पर निर्भर हैं, जिसकी लागत ज्यादा होती है और नियामकीय उल्लंघन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
बैंकिंग सेक्टर की गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) कई दशक के निचले स्तर पर है। इसके साथ ही सरकारी नैशनल ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) भी बैंकों के एनपीए के समाधान और उसे लेने के लिए बन गई है। ऐसे में प्राइवेट सेक्टर की एआरसी अब अपना ध्यान खुदरा एनपीए के अधिग्रहण की ओर ले जा रही हैं।
एसोसिएशन ऑफ एआरसीज इन इंडिया के सीईओ हरिहर मिश्र ने कहा कि एआरसी विभिन्न क्षेत्रों में दबाव वाली संपत्तियों के लिए एक जगह पर सभी समाधान देने वाले के रूप में बनने की कवायद कर रही हैं। माइक्रोफाइनैंस पोर्टफोलियो के अधिग्रहण में खातों के केवाईसी अनुपालन जैसी चुनौतियां हैं, जिनकी संख्या लाखों में हो सकती है।