कई निवेशकों के लिए 2008 एक बुरे सपने की तरह था जो सच भी हो गया। लगातार चार साल जबरदस्त कारोबार करने के बाद जब समय का चक्र घूमा तो इसने निवेशकों की अरबों-खरबों रुपये की संपत्ति चट कर डाली।
पिछले साल दिसंबर में सभी के चेहरों पर मुस्कराहट थी। लेकिन जब अमेरिका में आर्थिक संकट की आंच का अहसास होने लगा, तब कई विशेषज्ञों ने कहा कि भारत इन चीजों से कोसों दूर है, लेकिन माहौल बदलने में सिर्फ एक महीने का वक्त लगा।
21 जनवरी को कुछ ही घंटों में बेंचमार्क सूचकांक, सेंसेक्स और निफ्टी सबसे निचले स्तर तक गिर गए। और अगले 11 महीने में शेयर बाजारों के निवेशकों के लिए गिने-चुने खुशी के पल आए।
दोनों सूचकांक 50 प्रतिशत से अधिक गिर चुके हैं। लेकिन कुछ निवेशक तो अपने पोर्टफोलियो की कीमत का लगभग 80 से 85 प्रतिशत हिस्सा गंवा चुके हैं।
अब साल खत्म होने को है तो आइए ऐसी कुछ गलतियों पर नजर दौड़ाते हैं जो आमतौर पर निवेशकों ने पूरे साल में जाने-अनजाने कीं और उम्मीद है कि आगे ऐसी गलतियों से निवेशक दूर ही रहेंगे।
ज्यादा जोखिम उठाना : कर्ज के पैसे से शेयर खरीदना यह सोचते हुए कि अधिक मुनाफा होगा बेहद जोखिम भरा है।
और यह एक जुर्म है, जो पिछले साल 2008 में कई निवेशकों ने किया भी। आमतौर पर ब्रोकर या तो निवेशक को कर्ज दे देते हैं या फिर उसे जमा राशि के मुकाबले अधिक कारोबार करने की इजाजत दे देते हैं।
इस तरह के कर्ज पर ब्याज दर ज्यादा होती हे। इसके मद्देनजर, आमतौर पर एक लाख रुपये के साथ निवेशक बाजार में इस राशि के चार से पांच गुना अधिक रकम का बाजार में कारोबार करता है।
उदाहरण के लिए जब रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर 2,500 रुपये पर कारोबार कर रहे थे तो आपने 4 लाख रुपये कीमत के बरार यह शेयर खरीद लिए, वह भी 1 लाख रुपये की प्रारंभिक पूंजी के साथ।
अगर शेयर बढ़कर 2,700 रुपये के स्तर पर पहुंच जाए तो आपको सिर्फ 8 प्रतिशत का फायदा होगा, जबकि आपके निवेश (1 लाख रुपये) पर रिटर्न लगभग 32 प्रतिशत होगा।
अब मानते हैं कि शेयर की कीमतें घटकर 2,000 रुपये हो गई, यानी शेयर की कीमतें 20 प्रतिशत घट गई, लेकिन आपका नुकसान 80 प्रतिशत होगा। और अगर आप कुल पूंजी पर होने वाले नुकसान में ब्याज की लागत भी शामिल कर लें तो हो सकता है कि आपकी पूरी की पूरी प्रारंभिक पूंजी ही उड़ जाए।
सबक : गुणक प्रभाव के दो पहलू होते हैं। कर्ज की सुविधा का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ करें और इसमें कड़े तौर पर सीमाओं का पालन करें।
प्रभाव को कम आंकना : आमतौर पर जब शेयर बाजार गिरते हैं तो निवेशकों का सबसे पहला काम अधिक शेयर खरीदा होता है। इसके पीछे उनका विचार औसत लागत हो सकता है।
हालांकि, जब इस तरह की गिरावट होती है तो यही बात आपके दिमाग में सबसे आखिर में आती है। वह इसलिए क्योंकि जब आप खरीद की लागत कम करते हैं,
तो इस प्रक्रिया में ही काफी पैसा खर्च हो जाता है। इसे आप ऐसे भी देख सकते हैं कि एक खराब चीज को खरीदने के लिए अपनी सही पूंजी का इस्तेमाल करना।
आमतौर पर यह तब होता है जब कोई यह मानने को तैयार नहीं होता कि परिस्थितियां और भी खराब हो सकती हैं और इससे आपको काफी लंबे समय बाद अपना पैसा वापस मिलेगा।
सबक: इसी भी शेयर से लगाव होना काफी खतरनाक हो सकता है।
गर आप किसी शेयर को अधिक कीमत पर खरीदने की भूल कर चुके हैं तो कम कीमत पर खरीद कर अपनी गलती बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं है।
अटकलों पर निवेश करना : कई निवेशक इस बात के शिकार हो जाते हैं। लेकिन कई बार चीजें वाकई काफी बुरी हो जाती हैं। खासतौर पर मझोली और छोटी कंपनियों के साथ।
ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जहां चवन्नी या मामूली शेयरों में निवेश के नुस्खे बताए जाते हैं।
शुरुआत में हो सकता है कि उनसे आप कुछ पैसे कमा लें। लेकिन लंबे समय में इस तरह के निवेश के नुस्खे बड़ी गलती साबित हो सकते हैं।
सबक : सिर्फ अनदेखा करें।
डेरिवेटिव खेल : आम निवेशक के लिए एक ही सलाह इससे दूर रहें। निवेश गुरु वॉरेन बफेट ने एक बार कहा था कि डेरिवेटिव बड़े स्तर पर विनाश के लिए वित्तीय हथियार हैं। बड़ी संख्या में छोटे निवेशक नकदी क्षेत्र में निवेशक न कर डेरिवेटिव के रास्ते निवेश करते हैं।
वायदा और विकल्प बाजार चूंकि 20 प्रतिशत से थोड़े ज्यादा मार्जिन या थोड़े विकल्प प्रीमियम के साथ कम या ज्यादा समय के लिए आप इसमें निवेश करनी की अनुमति मिल जाती है, जिसकी वजह से यह काफी आसान हो जाता था।
लेकिन क्योंकि ये सिर्फ 20 प्रतिशत का ही भुगतान करते हैं, इसलिए बड़े जोखिम उठाए जाते हैं। इसलिए छोटे नुकसान तो दिखाई ही नहीं देते। बावजूद इसके, डेरिवेटिव्स में इस उम्मीद पर बाजार में निवेशक टिके रहते हैं कि समय अब बदलेगा और अब बदलेगा।
इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि नुकसान बढ़ता रहता है और वह कई बार किसी को नुकसान भी पहुंचा सकता है। उदाहरण के लिए, यह बेहतर है कि वायदा को 25 रुपये पर खरीदा जाए और लगभग 25.5 या 26 रुपये के स्तर पर मुनाफा कमाया जाए,
जिसका मतलब है कि मार्जिन राशि पर 10 से 20 प्रतिशत का रिटर्न मिलेगा। हालांकि नुकसान को देखते हुए भी वायदा सौदे में बने रहना काफी बुरा हो सकता है।
सबक : डेरिवेटिव्स निवेश के लिहाज से सही नहीं हैं, बल्कि वे हेजिंग का एक जरिया हैं। इसलिए या तो इनका इस्तेमाल न करें या फिर तब इसका इस्तेमाल करें जब आप इसकी खूबियों और खामियों से भली-भांति परिचित हो जाएं।
आपीओ निवेश : शेयर बाजार जब जबरदस्त कारोबार कर रहे थे तो औसतन कंपनियों के पहले पब्लिक इश्यू (आईपीओ) की कीमत 40 से 45 प्रतिशत अधिक लगाई जा रही थी। इसके फलस्वरूप निवेशक जल्दी पैसा कमाने के लिए आईपीओ का रास्ता अपना रहे थे।
ऐसा माहौल था कि जिस दिन आईपीओ सूचीबध्द होते निवेशकों को उसी दिन मुनाफा हो जाता। कइयों के लिए तो जल्द पैसा कमाने का यह एक आसान रास्ता बन गया था।लेकिन जब शेयर की कीमतें ऑफर कीमतों से भी कम होने लगी तो फंसने का सिलसिला भी शुरू हो गया।
और अगर किसी ने कर्ज लेकर आईपीओ के लिए आवेदन किया हुआ तो चीजें और भी बदतर हो गईं। निवेशक जो आईपीओ फंडिंग सुविधा का इस्तेमाल कर निवेश कर रहे थे उन्हें सबसे ज्यादा धक्का पहुंचा।
लंबे समय के लिए आईपीओ में निवेश करने वालों को हो सकता है कि कुछ साल बाद अच्छा-खासा रिटर्न मिल जाए, लेकिन अभी आईपीओ पाकर एक ही दिन में उनहें बेचना अभी के लिहाज से सही नहीं है।
सबक : आईपीओ में तभी निवेश करें जब आपको कंपनी पर पूरा यकीन हो। नहीं तो, इनसे दूर रहें। इसमें लंबा समय लगेगा। हालांकि जल्दी पैसा बनाने वालों ने काफी गंवाया है। 2009 में यह सुनिश्चित कर लें कि ऐसी गलतियां दोबारा न हों।