पिछले साल दिसंबर में हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी के बागी उम्मीदवारों से हुए नुकसान से सबक लेते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व ने चुनावी राज्यों के उन उम्मीदवारों से हाल के दिनों में संपर्क किया है जिन्हें पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया है। ये उम्मीदवार अब आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए या तो छोटे दलों से जुड़ गए हैं या उन्होंने घोषणा की है कि वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस ने भी इसी तरह की रणनीति तेलंगाना सहित सभी चुनावी राज्यों में अपनाने का फैसला किया है। वर्ष 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में पार्टी के बागी उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया था जिससे दो दर्जन से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रहे पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों की परेशानी बढ़ गई थी।
उदाहरण के तौर पर 17 अक्टूबर को एक्स पर ट्वीट किए एक पोस्ट में, कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राज्य के उन उम्मीदवारों से धैर्य रखने और कांग्रेस को मजबूत बनाने में अपना सहयोग देने की अपील की, जिन्हें पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया था। सिंह ने संकेत दिया कि जिन लोगों को पार्टी ने टिकट देने से इनकार किया था उन्हें मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर जगह दी जाएगी।
दिसंबर 2022 के हिमाचल प्रदेश के चुनावों के दौरान वोट हिस्सेदारी के लिहाज से भाजपा को एक प्रतिशत से कम वोट हिस्सेदारी के कारण कांग्रेस से हार का मुंह देखना पड़ा। पार्टी को कांग्रेस के 43.9 प्रतिशत वोट के मुकाबले 43 प्रतिशत वोट मिले थे। दिलचस्प बात यह है कि 68 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनावी मैदान में उतरे 99 निर्दलीय उम्मीदवारों में से अनुमानतः भाजपा के 28 बागी उम्मीदवार थे। जिन तीन निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव में जीत मिली वे भाजपा के बागी उम्मीदवार थे।
इन निर्दलीय उम्मीदवारों को सामूहिक रूप से 9.7 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि हिमाचल में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 112 निर्दलीय उम्मीदवारों को 6.34 प्रतिशत वोट मिले थे। राजस्थान में वर्ष 2018 के चुनावों में 13 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के बागी थे, जिन्होंने 200 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी को 99 सीटों पर रुकने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि कुछ महीने बाद ही 12 निर्दलीय विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए।
इन राज्यों में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों के आंकड़ों से पता चलता है कि निर्दलीय और छोटे दलों ने डाले गए वोट में से 20 प्रतिशत वोट हासिल किया। वहीं छत्तीसगढ़ में निर्दलीय उम्मीदवारों और छोटे दलों को करीब 24 फीसदी वोट मिले। हालांकि मध्य प्रदेश में ऐसे उम्मीदवारों और दलों को 18.09 प्रतिशत और राजस्थान में 22 प्रतिशत वोट मिले।
जहां मतों का अंतर कम होता है वहां बागियों और छोटे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में ऐसा ही कुछ हुआ जब भाजपा को आंशिक रूप से बेहतर वोट हिस्सेदारी मिली लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 32 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है। मध्य प्रदेश में, सप्ताहांत के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य का दौरा किया और टिकट नहीं दिए जाने से नाराज भाजपा नेताओं से मुलाकात भी की और उनमें से कई को निर्दलीय के रूप में चुनाव नहीं लड़ने के लिए राजी किया।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 22 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है जिसके चलते कम से कम एक दर्जन बागी कांग्रेस उम्मीदवार अब अमित जोगी के नेतृत्व वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसीजे) से जुड़ चुके हैं। राजस्थान में कांग्रेस अपने कम से कम एक-तिहाई मौजूदा विधायकों का टिकट काटने की तैयारी कर रही है क्योंकि पार्टी ने अपना जो आंतरिक सर्वेक्षण कराया उसमें इन उम्मीदवारों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के रुझान मिले हैं।
हालांकि पार्टी इन बागियों के छोटे दलों में शामिल होने या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने को लेकर चिंतित है। वर्ष 2018 में करीब 38 सीटों पर जीत महज 5,000 वोट से भी कम अंतर पर मिली थी वहीं इनमें 9 सीटें ऐसी भी थीं जिस पर जीत 1,000 वोट से भी कम के अंतर पर मिली थी।
निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा, कई छोटे दल भी भाजपा और कांग्रेस की जीत की संभावनाओं में सेंध लगा सकते हैं जो तीन हिंदी भाषी राज्यों के प्रमुख विपक्षी दल हैं। छत्तीसगढ़ में जहां गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जेसीसीजे और हमर राज पार्टी जैसे दल हैं वहीं राजस्थान में हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, माकपा और भारतीय ट्राइबल पार्टी चुनाव मैदान में हैं और कुछ क्षेत्रों में इनका प्रभाव भी है। इन चुनावी राज्यों के कुछ हिस्सों में बहुजन समाज पार्टी का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है जबकि आम आदमी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में इन ‘अन्य’ उम्मीदवारों ने महत्वपूर्ण वोट हिस्सेदारी हासिल की थी लेकिन ठीक पांच महीने बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने न केवल इन राज्यों में कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी में सेंध लगाई, बल्कि इसने निर्दलीय और छोटे दलों की वोट हिस्सेदारी भी अपने खाते में कर ली। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में इन तीन राज्यों में भाजपा की वोट हिस्सेदारी पार्टी के विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत बढ़ गई।
उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ में, भाजपा की वोट हिस्सेदारी बढ़कर 50.7 प्रतिशत हो गई वहीं कांग्रेस की वोट हिस्सेदारी दो प्रतिशत कम होकर 41 प्रतिशत हो गई लेकिन अन्य उम्मीदवरों की वोट हिस्सेदारी दिसंबर 2018 में उन्हें मिले 24 प्रतिशत का एक-तिहाई तक थी।