चुनावी मौसम में झंडे, बैनर, पटके, बिल्ले, टीशर्ट जैसी प्रचार सामग्री की बिक्री आम तौर पर खूब होती है मगर पिछले कुछ साल से यह कारोबार सिकुड़ता जा रहा है। इस बार के आम चुनाव में इसके कारोबार में कुछ ज्यादा ही सुस्ती है। चुनाव प्रचार सामग्री के कारोबारी इसकी बड़ी वजह कांग्रेस को बता रहे हैं, जो आर्थिक तंगी से जूझ रही है।
कांग्रेस तो माली संकट से जूझ रही है मगर दूसरी पार्टियां भी कारोबारियों के बहुत काम नहीं आ रही हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का इस बार अच्छा माहौल बनता दिख रहा है, इसलिए दूसरे दलों के प्रत्याशी और निर्दलीय उम्मीदवार प्रचार पर कम खर्च कर रहे हैं।
भाजपा अपनी ज्यादातर प्रचार सामग्री या तो खुद बनवा रही है या गिने-चुने बड़े कारोबारियों से खरीद रही है। इसलिए प्रचार सामग्री के छोटे कारोबारियों का धंधा सुस्त पड़ गया है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल जेल में हैं, इसलिए उनकी पार्टी के प्रचार की रफ्तार भी धीमी है। बची खुची कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी है, जहां अब ज्यादा प्रचार होता है। यही वजह है कि पिछले एक दशक में लोक सभा चुनावों के दौरान प्रचार सामग्री पर खर्च घटकर आधे से भी कम रह गया है।
घटते धंधे का सबसे बड़ा नमूना दिल्ली का सदर बाजार है, जो उत्तर भारत में प्रचार सामग्री के कारोबार का बड़ा ठिकाना है। इस बाजार से दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के हिस्सों तक भी माल जाता है।
यहां प्रचार सामग्री का कारोबार करने वाले प्रतिष्ठान अनिल भाई राखीवाला के सौरभ गुप्ता बताते हैं कि लोक सभा चुनावों के उम्मीदवार इस बार काफी कम सामान खरीद रहे हैं। पार्टियां माल खरीद रही हैं और सबसे ज्यादा ऑर्डर भाजपा से ही आ रहे हैं। भाजपा से टोपियों और गमछों आदि के ऑर्डर हमेशा ही आते थे मगर इस बार सबसे ज्यादा मांग ‘मैं भी मोदी का परिवार’, ‘मोदी की गारंटी’ और ‘अबकी बार 400 पार’ जैसे नारे लिखी प्रचार सामग्री की आ रही है। कांग्रेस से भी ऑर्डर मिल रहे हैं और सबसे ज्यादा मांग ‘हाथ बदलेगा हालात’ नारे वाली सामग्री की है।
प्रचार के इस सामान का दाम 10 रुपये से लेकर 100 रुपये तक है। सदर बाजार में प्रचार सामग्री के प्रमुख कारोबारी गुरुप्रताप सिंह कहते हैं कि पिछले करीब 10 साल में यह धंधा बहुत कम हो गया है। एक दौर था, जब चुनाव के दौरान सांस लेने की फुरसत भी मुश्किल से मिल पाती थी मगर आजकल कामगार खाली बैठे हैं और दुकानों पर भी आवाजाही बहुत कम है।
कारोबारी इतने मायूस हैं कि दुकानें बेरौनक नजर आ रही हैं क्योंकि उन्हें ठीक से सजाया ही नहीं गया है। सिंह बताते हैं कि बड़े ऑर्डर के बजाय ऐसे छोटे ऑर्डर अधिक आ रहे हैं, जिनमें कोई व्यक्ति किसी उम्मीदवार की मदद करने के लिए बतौर उपहार चुनाव सामग्री दे रहा है।
चुनाव प्रचार की सामग्री का कारोबार सुस्त क्या पड़ा, सदर बाजार में इस कारोबार से जुड़े व्यापारी भी नदारद होने लगे। बाजार में इसकी दुकानें काफी कम हो गई हैं। प्रचार सामग्री का कारोबार करने वाले जेन एंटरप्राइजेज के फाजिल भाई कहते हैं, ’10-12 साल पहले चुनाव के समय सदर बाजार दुल्हन की तरह सज जाता था और छोटे-बड़े कई कारोबारी इससे जुड़ जाते थे। लेकिन इस बार बाजार में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है।’
कारोबारियों के मुताबिक कभी इस बाजार में छोटे-बड़े मिलाकर 30 से 40 कारोबारी प्रचार सामग्री का कारोबार करते थे। अब इनकी संख्या घटकर 20 भी नहीं रह गई है। सिंह बताते हैं कि अब वे कारोबारी ही इस धंधे से जुड़े हैं, जिनका काम काफी पुराना है।
फाजिल कहते हैं कि उम्मीदवार प्रचार सामग्री पर खर्च करने के बजाय नकद, शराब व दूसरी चीजों पर ज्यादा खर्च करने लगे हैं। पहले लोक सभा चुनाव में एक उम्मीदवार प्रचार सामग्री पर 12 से 15 लाख रुपये आराम से खर्च करता था, लेकिन अब इसका आधा भी खर्च नहीं किया जा रहा। पार्टियों में भी भाजपा ही जमकर खर्च कर रही है मगर कांग्रेस से ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कारोबारी कह रहे हैं कि कांग्रेस के बैंक खाते सीज होने के कारण धंधे को चोट पड़ी है। केजरीवाल के जेल में होने से भी दिल्ली में प्रचार सामग्री का कारोबार हिचकोले खा रहा है।
कारोबारियों के मुताबिक इस बार आम चुनाव में प्रचार सामग्री पर प्रमुख दलों का एक उम्मीदवार 6 से 8 लाख रुपये खर्च कर सकता है। देश की 543 लोक सभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं।
प्रत्येक सीट पर तीन अहम उम्मीदवार माने जाएं जो 1,629 उम्मीदवार प्रमुखता से चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका चुनाव प्रचार सामग्री पर खर्च 100 से 130 करोड़ रुपये हो सकता है। बाकी उम्मीदवारों का खर्च भी जोड़ दें तो कुल खर्च 150 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। पार्टी द्वारा प्रचार सामग्री पर खर्च की जाने वाली रकम इससे अलग है।
एक उम्मीदवार चुनाव में अधिकतम 95 लाख रुपये खर्च कर सकता है। इस हिसाब से हरेक लोक सभा सीट पर 3-3 अहम उम्मीदवार होने से कुल खर्च 1,547 करोड़ रुपये बैठेगा। अन्य उम्मीदवारों का खर्च भी जोड़ने पर यह करीब 2,000 करोड़ रुपये तक हो सकता है।