खाद्य सुरक्षा के लिहाज से अहमियत रखने वाली सार्वजनिक भंडारण (स्टॉकहोल्डिंग) की समस्या का स्थायी समाधान और लटक सकता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले जारी एक प्रस्ताव में कहा गया है कि सार्वजनिक भंडारण की समस्या के स्थायी समाधान पर रजामंद होना चाहिए और उसे स्वीकार भी किया जाना चाहिए मगर इसके लिए अगली मंत्रिस्तरीय बैठक तक की मोहलत दे दी गई है।
इसका मतलब है कि भारत जिस स्थायी समाधान के लिए पुरजोर कोशिश और गंभीर बातचीत कर रहा है, उसे दो साल आगे खिसकाया जा सकता है क्योंकि मंत्रिस्तरीय बैठक दो साल में एक बार होती है। प्रस्ताव के मसौदे में एक और विकल्प सुझाया गया है, जो 26 फरवरी से अबूधाबी में शुरू हो रही 13वीं बैठक में स्थानीय समाधान स्वीकार करने की बात करता है।
मगर इस पर क्या फैसला होता है, यह इस हफ्ते अंतिम दौर की बातचीत निपटने के बाद ही साफ होगा।
मंत्रिस्तरीय सम्मेलन या डब्ल्यूटीओ में निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था है और बहुपक्षीय व्यापार नियमों के दायरे में आने वाले सभी मसलों पर इसमें सहमति से निर्णय लिया जा सकता है।
सरकारी अधिकारियों ने पहले कहा था कि आगामी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे पर स्थायी समाधान की बहुप्रतीक्षित मांग पर तेजी से काम करना सरकार के लिए शीर्ष प्राथमिकता होगी। इस पर करीब दशक भर पहले सहमति बनी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि जब तक सार्वजनिक भंडारण का स्थायी समाधान नहीं निकलता तब तक भारत भारत कृषि से जुड़े दूसरे विषयों पर चर्चा में शामिल नहीं होगा।
अपने सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम के जरिये भारत सरकार गेहूं, चावल जैसे अनाज पहले से तय कीमत पर खरीदती है और लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये सब्सिडी के साथ सस्ते दाम में उपलब्ध कराती है। यह खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने और भूख से त्रस्त लाखों लोगों को बचाने का सरकार का नीतिगत तरीका है।
डब्ल्यूटीओ में भारत को इस मुद्दे पर अफ्रीका समेत विकासशील देशों के एक समूह का समर्थन मिल गया है। मगर अमेरिका और 19 सदस्यों वाले केयर्न्स ग्रुप सहित विकसित राष्ट्र इस किसानों को सब्सिडी देना मानते हैं, जो उनके हिसाब से व्यापार को बिगाड़ती है।
इस मसले का स्थायी समाधान जरूरी है क्योंकि कुछ विकसित राष्ट्र खाद्यान्न खास तौर पर चावल के लिए भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) कार्यक्रम पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि इस पर दी जा रही सब्सिडी डब्ल्यूटीओ व्यापार नियमों के तहत स्वीकृत सीमा से करीब तिगुनी हो गई है।
व्यापार नियमों के तहत डब्ल्यूटीओ के सदस्य का खाद्य सब्सिडी पर खर्च उत्पादन मूल्य के 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। यह उत्पादन मूल्य तय करने के लिए 1986-88 की कीमत को संदर्भ माना जाता है।
निर्धारित सीमा से अधिक की सब्सिडी को व्यापार बिगाड़ने वाला माना जाता है। भारत को डर है खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम पूरी तरह लागू करने पर डब्ल्यूटीओ द्वारा तय सब्सिडी सीमा का उल्लंघन हो सकता है। इसलिए वह खाद्य सब्सिडी की सीमा तय करने का फॉर्मूला बदलने की मांग कर रहा है।
इसके अस्थायी उपाय के तौर पर 2013 की मंत्रिस्तरीय बैठक में डब्ल्यूटीओ के सदस्यों ने पीस क्लॉज के नाम से चर्चित व्यवस्था लागू की थी और ब्यूनस आयर्स में होने वाले 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में स्थायी समाधान पर बातचीत का वादा किया था।
सीमा उल्लंघन की स्थिति में अपने खाद्यान्न खरीद कार्यक्रम को सदस्य देशों की कार्रवाई से बचाने के लिए भारत ने डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत पीस क्लॉज का इस्तेमाल किया है।
दिल्ली के थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार सार्वजनिक भंडारण पर समझौता होना मुश्किल है क्योंकि अमेरिका और केयर्न्स समूह जैसे विकसित राष्ट्रों की दलील है कि भारत के इस कार्यक्रम से व्यापार में बाधा आ सकती है।
जीटीआरआई ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा था, ‘अमेरिका ने सार्वजनिक भंडारण और दूसरे मसलों के निपटारे के लिए तथा सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए चरणबद्ध तरीके से काम करने का सुझाव दिया है। विकसित और विकासशील देशों के बीच विवाद के कारण 13वें मंत्रिस्तीय सम्मेलन में इसका समाधान होने के आसार नहीं हैं। विकसित देश मुक्त व्यापार पर जोर दे रहे हैं मगर विकासशील राष्ट्र खाद्य सुरक्षा बरकरार रखना चाहते हैं।’
इंडियन कोऑर्डिनेशन कमिटी ऑफ फार्मर्स मूवमेंट्स (आईसीसीएफएम) ने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि सार्वजनिक भंडारण को कमजोर करने वाले किसी भी दबाव का विरोध किया जाए और इसके स्थायी समाधान के लिए लड़ा जाए ताकि भारत जैसे विकासशील देशों में लाखों जरूरतमंदों के लिए खाद्य सुरक्षा पक्की हो सके।
पत्र में कहा गया, ‘हम 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के संभावित परिणाम से चिंतित हैं क्योंकि इसका हमारी आजीविका और भारतीय कृषि के भविष्य पर असर पड़ सकता है। आपसे अनुरोध है कि हमारे हितों की रक्षा करें और सुनिश्चित करें के अबू धाबी में लिए जाने वाले फैसले हमारे किसानों, हमारी खाद्य सुरक्षा और कृषि के हमारे पर्यावरण हितैषी तौर-तरीकों को महफूज रखें।’
आईसीसीएफएम भारत में किसान संगठनों का नेटवर्क है। इसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र के किसान आंदोलन शामिल हैं।