भारत में विदेशी निवेश (FDI) के क्षेत्र में सिंगापुर ने एक बार फिर अपनी बादशाहत कायम रखते हुए 2024-25 में लगभग 15 अरब डॉलर (USD 14.94 billion) के निवेश के साथ लगातार सातवें वर्ष सबसे बड़ा स्रोत बनने का गौरव हासिल किया है। यह जानकारी हाल ही में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वित्तीय वर्ष में भारत को कुल 50 अरब डॉलर की इक्विटी एफडीआई प्राप्त हुई, जो 2023-24 के मुकाबले 13% की वृद्धि दर्शाती है। यदि पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी को भी जोड़ा जाए, तो कुल एफडीआई 14% बढ़कर 81.04 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले तीन वर्षों में सर्वाधिक है।
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2023-24 में सिंगापुर से भारत को जहां 11.77 अरब डॉलर का निवेश मिला था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 14.94 अरब डॉलर हो गया। सिंगापुर का योगदान कुल एफडीआई का लगभग 19% रहा।
2018-19 से सिंगापुर लगातार भारत में एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। इससे पहले 2017-18 में मॉरीशस ने सर्वाधिक निवेश किया था। 2024-25 में मॉरीशस से भारत को 8.34 अरब डॉलर का निवेश प्राप्त हुआ।
2024-25 के दौरान भारत को अन्य देशों से भी बड़ा निवेश मिला, जिनमें प्रमुख हैं:
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रूमकी मजूमदार ने कहा, “भले ही वैश्विक पूंजी बाजारों में अस्थिरता हो और व्यापार के मोर्चे पर अनिश्चितताएं हों, भारत ने स्थिर और दीर्घकालिक निवेश आकर्षित करने में सफलता पाई है।”
उन्होंने कहा कि सिंगापुर, अपने कम कर दर वाले माहौल और मज़बूत कानूनी ढांचे के चलते एशिया में निवेश के लिए एक रणनीतिक वित्तीय द्वार के रूप में देखा जाता है। भारत और सिंगापुर के बीच डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के कारण सिंगापुर स्थित संस्थाएं भारत में निवेश कर करभार कम कर पाती हैं।
इंडसलॉ के पार्टनर लोकेश शाह ने कहा, “भारत-सिंगापुर कर संधि भारत में एफडीआई के प्रमुख कारणों में से एक रही है। अब सिंगापुर का प्रभुत्व वास्तविक व्यावसायिक और नियामकीय लाभों पर आधारित है।”
शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी के पार्टनर रुद्र कुमार पांडे ने बताया, “सिंगापुर एक वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल फंड्स का घर है। ये निवेशक भारत को उच्च-विकास संभावनाओं वाला देश मानते हैं, विशेष रूप से वित्तीय सेवाएं, बैंकिंग, बीमा, बीपीओ, लॉजिस्टिक्स, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, ट्रेडिंग, दूरसंचार और फार्मास्युटिकल जैसे क्षेत्रों में।”
एफडीआई भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि यह देश के बुनियादी ढांचे — जैसे बंदरगाह, हवाई अड्डे और राजमार्ग — के विकास को गति देता है। साथ ही, यह भुगतान संतुलन सुधारने और रुपये को मजबूत करने में भी मदद करता है, विशेष रूप से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले।
(एजेंसी इनपुट के साथ)