लुधियाना के प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर की चौड़ी और धूल भरी सड़कें सुबह की पहली किरण के साथ ही जीवंत हो उठती हैं। इस क्लस्टर की स्थापना 1980 के दशक में हुई थी। यह ग्रांड ट्रंक रोड से थोड़ा हटकर है, जहां सैकड़ों निर्यात इकाइयां मौजूद हैं।
लुधियाना में ही वाहन कलपुर्जे बनाने वाली एक फोर्जिंग इकाई में बतौर प्रेस ऑपरेटर काम करने वाले 25 वर्षीय कपिल का दिन हमेशा की तरह शुरू होता है, लेकिन माहौल कुछ अलग दिख रहा है। दरअसल उनकी कंपनी के प्रमुख अमेरिकी ग्राहकों ने ऑर्डर रद्द करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने कहा, ‘मुझे पता चला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर भारी शुल्क लगा दिया है। मेरी कंपनी अमेरिका को वाहन कलपुर्जों का निर्यात होता है। मगर अब हम उन्हें आपूर्ति नहीं कर पाएंगे जिससे हमारा काम प्रभावित होगा। आने वाले दिनों में मेरे जैसे लोगों के लिए काम ढूंढ़ना मुश्किल होगा।’ मगर उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि यह मामला जल्द सुलझ जाएगा।’
अमेरिका ने 6 अगस्त को भारत से आयातित वस्तुओं पर 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की। इससे कुल कर बोझ दोगुना होकर 50 फीसदी हो जाएगा जो 28 अगस्त से प्रभावी होगा। इससे अमेरिका जाने वाले लगभग हर श्रेणी के उत्पाद के लिए चीन जैसे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले भारत को नुकसान होगा।
पंजाब की औद्योगिक हृदयस्थली लुधियाना भी इस तूफान के केंद्र में है। यहां की 300 से अधिक कंपनियां सीधे तौर पर अमेरिकी बाजार को निर्यात करती हैं। निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में वाहन कलपुर्जे, इंजीनियरिंग के सामान, होजरी, कपड़ा, हैंड टूल्स और कृषि उत्पाद शामिल हैं।
उद्योग के नेताओं ने आगाह किया है कि सितंबर से आगे तक के ऑर्डर रद्द होने के कारण 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो सकता है। मगर शहर के निर्यातक बिल्कुल शांत दिख रहे हैं। उनके लिए यह एक ऐसा तूफान है जिसे झेलना ही होगा और उसके आगे किसी भी सूरत में झुकना नहीं है। इसलिए वे अपनी मजबूती, वैकल्पिक बाजार और वार्ताकारों में भरोसे की बात करते हैं।
लुधियाना के निटवियर ऐंड अपैरल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदर्शन जैन ने कहा, ‘इस शहर की अमेरिकी बाजार पर निर्भरता मध्यम है, मगर अधिक निर्भरता वाली कंपनियों को नुकसान होगा। कपड़ा से ज्यादा इंजीनियरिंग के सामान और वाहन कलपुर्जा बनाने वाली इकाइयों को नुकसान होगा क्योंकि उनकी निर्भरता अधिक है।’
जैन ने कहा कि निर्यातकों ने अप्रैल से ही इस ओर ध्यान देना शुरू कर दिया था, जब ट्रंप ने पहली बार जवाबी शुल्क की घोषणा की थी। उन्होंने कहा, ‘लुधियाना 20,000 करोड़ रुपये के कारोबार वाला पंजाब का प्रमुख कपड़ा केंद्र है। मगर यह काफी हद तक घरेलू बाजार पर केंद्रित है। इसमें ज्यादातर सूक्ष्म एवं लघु कारोबारी शामिल हैं। उन्हें नोटबंदी, जीएसटी और कोविड महामारी के झटके पहले ही लग चुके हैं। इसलिए अमेरिका के इस पहल से उन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।’
केजी एक्सपोर्ट्स के संस्थापक अध्यक्ष हरीश दुआ ने कहा कि विविधीकरण एक आजमाया और परखा हुआ तरीका है। उन्होंने कहा, ‘ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते ने हमारे लिए नए बाजार खोले हैं। यह सच है कि अमेरिकी खरीदारों ने तत्काल ऑर्डर रद्द कर दिए हैं, लेकिन हमें लगता है कि यह मुद्दा जल्द सुलझ जाएगा। अगर शुल्क 25 फीसदी पर बरकरार रहता है तो भी भारतीय निर्यातकों को बाजार में बढ़त हासिल है। वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे प्रतिस्पर्धियों को अभी भी उच्च शुल्क का सामना करना पड़ रहा है।’ सरकारी आंकड़ों से भी उम्मीद बढ़ती है।
भारत से अमेरिका को निर्यात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 2 फीसदी है। कुल 443 अरब डॉलर के वस्तु निर्यात में अमेरिकी बाजार का योगदान महज 81 अरब डॉलर है। इसमें पंजाब का योगदान वित्त वर्ष 2021 में 70 करोड़ डॉलर था।
वाहन कलपुर्जा बनाने वाले ईस्टमैन समूह के संस्थापक अध्यक्ष जेआर सिंगल के लिए ट्रंप शुल्क का महत्त्व आर्थिक से ज्यादा भू-राजनीतिक है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसानों और डेरी क्षेत्र के लिए अमेरिकी आयात की अनुमति न देकर सरकार ने बिल्कुल सही काम किया है।
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका भारत के साथ अपनी शर्तों पर व्यापार करार करना चाहता है। मगर इस शहर के निर्यातक पहले से ही पूरी तरह तैयार थे और उन्होंने अपने ऑर्डर पहले ही दे दिए थे। लघु अवधि में कुछ नुकसान हो सकता है, लेकिन आखिरकार हम इससे उबर जाएंगे।’
मगर जमीनी स्तर पर कहानी कुछ अलग ही दिखती है। लुधियाना में काम कर रहे लाखों प्रवासी श्रमिकों के लिए चिंता बिल्कुल स्पष्ट है। 44 वर्षीय नरेंद्र राम पिछले दो दशक से हर साल रंगाई का काम करने के लिए झारखंड से आते हैं। वह परिधान की एक दुकान भी चलाते हैं। त्योहारी सीजन नजदीक आने पर भी काम में तेजी न दिखने के कारण वह चिंतित हैं।
उन्होंने कहा, ‘यह टकराव सही नहीं है। हम सरकार से अपील करते हैं कि इसे जल्द ही सुलझा लिया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारा काम प्रभावित होगा।’
भारतीय निर्यातकों के संगठन फियो के अध्यक्ष एससी रल्हन ने भी आगाह किया है। उन्होंने कहा कि कपड़ा के विपरीत इंजीनियरिंग सामान और वाहन कलपुर्जा जैसी वस्तुएं अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखला से काफी गहराई से जुड़ी हैं।
उन्होंने कहा, ‘हमारी मशीनें और उत्पाद खास तौर पर अमेरिका की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसलिए उन्हें अन्य बाजारों में भेजना आसान नहीं होगा। यहां की कई इकाइयों ने कामकाज के घंटे पहले ही कम कर दिए हैं और वेतन कम कर दिया है। सबकुछ ठीक होने में करीब दो साल तक लग सकते हैं। इस शहर में करीब 2,00,000 लोगों को आजीविका खोने का खतरा है।’
रल्हन ने सरकार से 20,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज के साथ इस मामले में दखल देने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका झुकने के लिए तैयार नहीं है तो भारत को अन्य व्यापार सौदों को तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए।