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दुनिया ने लंबे समय से ऐसा संकट नहीं देखा, भारत को नहीं कर सकते अलग

Last Updated- December 11, 2022 | 1:31 PM IST

सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अंशकालिक सदस्य राकेश मोहन ने कहा कि अगर 2 साल में खुदरा महंगाई दर घटकर 4 प्रतिशत पर आ जाती है तो 6 प्रतिशत रीपो रेट सामान्य है। इस समय नीतिगत दर 5.90 प्रतिशत है। रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर ने वैश्विक मंदी, इसके भारत पर असर आदि मसलों पर इंदिवजल धस्माना से बात की। प्रमुख अंश.. 
नोरिएल रोबिनी सहित कई विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि 2022 के अंत से अमेरिका व शेष दुनिया में बहुत बुरी और लंबी चलने वाली मंदी शुरू होने वाली है। भारत से वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि पहले ही घटनी शुरू हो गई है। क्या ऐसी मंदी का भारत पर कोई गंभीर असर आप देख रहे हैं?
मौजूदा अवधि को ऐसी अनिश्चितता के रूप में देखा जा रहा है, जैसा लंबे समय से दुनिया ने नहीं देखी है। 2008-09 के नॉर्थ अटलांटिक फाइनैंशियल क्राइसिस (एनएएफसी) के वक्त भी ऐसा नहीं था। कोविड और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण हम नहीं जानते कि आगे क्या होने वाला है। करीब डेढ़ दशक तक पूरी दुनिया में बहुत कम ब्याज और कम महंगाई का दौर चला है। अब महंगाई दर बढ़ रही है, लेकिन हम नहीं जानते कि यह कब रुकेगी। कम से कम 40 साल में पहले किसी ने नहीं देखा कि पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में महंगाई दर 7 से 10 प्रतिशत रही हो। इसके अलावा हर जगह जनसंख्या वृद्धि कम होने के साथ भौगोलिक बदलाव भी आ रहा है, जिसकी वजह से मध्यावधि में वैश्विक वृद्धि प्रभावित होगी। इसे देखते हुए हम इससे अप्रभावित रहने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। भले ही हमारी अर्थव्यवस्था विश्व में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक होगी, हमें सावधान रहना होगा क्योंकि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा हैं। हर मामले में हमें सावधान रहना होगा। 
महंगाई दर रिजर्व बैंक की तय सीमा में नहीं आ रही है और नीतिगत दरें बढ़ाए जाने के बावजूद सितंबर में 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई। क्या आपूर्ति की समस्या होने के बावजूद मौद्रिक नीति सख्त की जाएगी?
पहली बात यह कि मैं महंगाई दर को लक्षित करने के ढांचे का समर्थक नहीं रहा हूं। इसे अगर छोड़ दें तो मौद्रिक नीति की कार्रवाई के असर में लंबा वक्त लगता है। आज की कार्रवाई का असर 4-6 तिमाही बाद आता है। अभी मई में शुरू हुई सख्ती का असर अभी तलाशना गलत है। महंगाई को लक्षित करने का एक नकारात्मक असर यह है कि लोगों को केंद्रीय बैंक की ताकत पर बहुत भरोसा होता है कि मौद्रिक नीति से महंगाई पर लगाम लग जाएगी।
दूसरी बात हम वास्तव में नहीं कह सकते कि अभी मौद्रिक नीति सख्त है। रीपो रेट 5.9 प्रतिशत है और सितंबर में महंगाई दर 7.4 प्रतिशत है, इसका मतलब वास्तविक नीतिगत दर अभी ऋणात्मक है।  अगर अबसे 2 साल में महंगाई दर 4 प्रतिशत पर आ जाती है तो नीतिगत दर 6 प्रतिशत रह सकती है यानी वास्तविक नीतिगत दर 2 प्रतिशत होगी और यह सही व सामान्य है।
महंगाई नहीं घट रही है, वहीं अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 0.8 प्रतिशत कम हो गया। क्या आपको लगता है कि एमपीसी वृद्धि को गति देने और महंगाई पर काबू पाने को लेकर असमंजस में है?
आज केंद्रीय बैंकों के सामने यह सबसे कठिन सवाल है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अर्थव्यवस्था में मंदी के लिए ब्याज दरें कितनी जिम्मेदार हैं। अगर हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस साल भारत की नॉमिनल आर्थिक वृद्धि दर 12 से 15 प्रतिशत रहेगी और वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 6 से 7 प्रतिशत रहेगी, जैसा कि ज्यादातर अनुमान में बताया जा रहा है और महंगाई दर 4 से 7 प्रतिशत के बीच रहेगी तो ऐसे में नॉमिनल ब्याज दरें 8 से 10 प्रतिशत बहुत ज्यादा नहीं हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी आर्थिक वृद्धि में सुस्ती और बढ़ती महंगाई के मसले का जिक्र किया है। आपके मुताबिक आगामी बजट कैसा रहेगा?
मैं गैर परंपरागत विचार रखना चाहूंगा। हमें बजट में मध्यावधि का विचार करना चाहिए, न कि तात्कालिक वृहद्आर्थिक प्रबंधन का।  स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण में भारत फिसड्डी है। सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे दिखाते हैं कि गांवों में करीब 30 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 20 प्रतिशत बहुत बुरी स्थिति में हैं।  सस्ते अनाज उपलब्ध कराने की कवायद के बावजूद पोषण बड़ी समस्या है। सुधार हुआ, लेकिन पर्याप्त नहीं है। इस मसले का समाधान एक साल के बजट में नहीं हो सकता, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि बजट में यह संकेत मिले कि 3 साल या 5 साल के ढांचे में इन पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।
रघुराम राजन सहित कई अर्थशास्त्रियों ने सरंक्षणवाद कहकर उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना की आलोचना की है। आपकी क्या राय है? 
आप जब भी इस तरह के कार्यक्रम की बात करते हैं तो कुछ क्षेत्रों को चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। अर्थशास्त्र के साहित्य में तमाम सवाल हैं कि सरकार को क्षेत्रों का चयन कैसे करना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था बेहतर हो। 

First Published - October 19, 2022 | 10:55 PM IST

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