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मंदी से शहर हुए बेजार, पर गांव की गलियां ‘गुलजार’

Last Updated- December 08, 2022 | 11:06 AM IST

राजधानी दिल्ली समेत तमाम शहरों में मंदी पांव पसारने लगी है। बड़ी-बड़ी कंपनियों के शोरूम सूने पड़े हैं, खरीदारों का टोटा है, जो आ भी रहे हैं, दाम की तफ्तीश कर चले जा रहे हैं। लेकिन :


* उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के मीरपुर कस्बे में महेश प्रसाद की बांछें खिली हुई हैं। पूरे साल उनके खेतों में जमकर उपज हुई है और उन्होंने किराये पर टैक्सी देने का धंधा भी शुरू किया है। उन्होंने मारुति सुजुकी की पंचायत योजना के तहत चार ओमनी वैन खरीदीं।
        
* नामी एफएमसीजी कंपनी डाबर इंडिया लिमिटेड के मुरादाबाद स्थित डीलर राजीव सिंह के चेहरे पर भी मुस्कान है। जहां सब लोग बिक्री घटने से परेशान हैं, वहीं राजीव के पास ऑर्डरों की कमी नहीं है। खास तौर पर संभल, चंदौसी जैसे कस्बों और गांवों में जमकर  बिक्री हो रही है।

ऊपर महज दो उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि गांव अब नई ‘कॉर्पोरेट रणभूमि’ बन रहे हैं और मंदी से लड़ने की कुव्वत भी उनके भीतर है। देश की अव्वल नंबर की कार निर्माता कंपनी मारुति काफी समय से गांवों पर ध्यान दे रही है।

बाइक कंपनी हीरो होंडा भी गांवों में अपने नेटवर्क को मजबूत कर रही है। कंज्यूमर डयूरेबल्स बनाने वाली कंपनी सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, एफएमसीजी दिग्गज डाबर, एचयूएल, आईटीसी वगैरह भी गांवों और कस्बों पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे रही हैं।

वजह साफ है, मंदी के इस दौर में गांव और कस्बों में उन्हें ज्यादा सुरक्षित बाजार नजर आ रहा है। यह नया भारत है, जो मंदी के भूत को खेत-खलिहानों के बीच पटखनी दे रहा है।

खजाने का दरवाजा

मंदी से जहां पूरी दुनिया परेशान है, वहीं गांवों में बिक्री के मामले में खजाने छिपे हुए हैं। डाबर इंडिया के मुख्य कार्य अधिकारी सुनील दुग्गल कहते हैं, ‘हमारी बिक्री में गांवों की हिस्सेदारी पूरे 50 फीसदी है। हमें लगता है कि 2009 में यह आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा।’

गांवों में बाजार को भुनाने के लिए कंपनी डाबर आंवला, वाटिका और गुलाबारी ब्रांडों की पैठ गांवों में बढ़ाने के लिए खास कार्यक्रम भी चला रही है। कंपनी प्रवक्ता का कहना है, ‘फसल अच्छी हुई है, तो किसानों की जेबें भरी हुई हैं। इसलिए गांवों में सबसे दिलचस्प बाजार हमारे लिए मौजूद है।’

दिग्गजों की भीड़

मारुति तो पिछले काफी समय से गांवों पर ध्यान दे रही है। कंपनी ने पिछले साल अप्रैल में पंचायत योजना शुरू की थी, जिसके तहत उसने पिछले वित्त वर्ष में 26,000 वाहन बेचे थे। इस वित्त वर्ष में तो नवंबर महीने तक ही उसका बिक्री का आंकड़ा 35,500 तक पहुंच चुका है।

कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘गांवों में बाजार से इनकार ही नहीं किया जा सकता। इस बाजार का फायदा उठाने के लिए हम आईटीसी के ई चौपाल के साथ भी हाथ मिला चुके हैं। इसके तहत अक्टूबर 2008 के बाद से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में योजना शुरू की गई है।’

मारुति इसके तहत गांवों में ग्राम प्रधान, सरपंच तथा शिक्षकों समेत प्रभाव वाले लोगों को छूट के साथ कार मुहैया कराती है। इस प्रकार उसके उत्पादों का प्रचार होता है। अधिकारी के मुताबिक गांवों में मंदी का असर नजर ही नहीं आ रहा है।

हीरो होंडा भी मारुति की ही तर्ज पर ‘गली-गली आंगन-आंगन’ कार्यक्रम चला रही है। इसमें भी ग्रामीणों तक पहुंचकर उन्हें वित्तीय सहूलियत दिलाते हुए दोपहिया बेचे जाते हैं।

कस्बे भी तारणहार

कंज्यूमर डयूरेबल्स कंपनियां गांवों के बजाय कस्बों पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स के उप प्रबंध निदेशक रवींद्र जुत्शी कहते हैं, ‘कस्बों और छोटे शहरों में हमारे लिए जबरदस्त बाजार है। वहां का उपभोक्ता भी बेहतर उत्पाद चाहता है और उसके पास खर्च करने के लिए पैसा भी है। हम वहां अपने बिक्री नेटवर्क को मजबूत कर रहे हैं।’

एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रबंध निदेशक मून बी शिन के मुताबिक गांवों और कस्बों में असली बाजार है, जो मंदी से बेअसर है। मध्यम वर्ग के पास जो खर्च करने योग्य रकम है, उसका आधे से ज्यादा हिस्सा तो छोटे शहरों और कस्बों में ही है। आने वाले दिनों में यही सबसे बड़ा बाजार होगा।

First Published - December 25, 2008 | 10:14 PM IST

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