ईरान और इजरायल के बीच युद्ध में अमेरिका की सीधी भागीदारी से फारस की खाड़ी से आपूर्ति में व्यवधान का खतरा बढ़ गया है। हालांकि, भारत के पास वर्तमान में कच्चे तेल की पर्याप्त आपूर्ति है और अन्य स्रोतों से खरीद बढ़ने की उम्मीद भी है। इसलिए फिलहाल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। अधिकारियों ने कहा कि तेजी से बदलते हालात पर भारत पूरी तरह नजर बनाए हुए है।
रविवार को एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए ईरानी संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए आपातकालीन उपायों पर मतदान किया और उन्हें मंजूरी दे दी। ईरान के सरकारी मीडिया प्रसारक ने कहा कि हालांकि, देश की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को इसके बंद होने पर अंतिम निर्णय लेना होगा।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘स्थिति बहुत तेजी से बदल रही है। ऊर्जा इन्फ्रा और माल ढुलाई पर युद्ध का प्रभाव तत्काल स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है। कच्चे तेल का प्रवाह फिलहाल जलडमरूमध्य से जारी रह सकता है, लेकिन तेल की कीमतें अब बहुत लंबे समय तक बढ़ी रहने की आशंका है। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं।’ एक अन्य अधिकारी ने कहा कि वैश्विक तेल आपूर्ति मांग से अधिक है। भारतीय आयातकों और रिफाइनरों के पास पर्याप्त क्रूड स्टॉक है।
उन्होंने कहा, ‘मंत्री इस विषय पर रोजाना बैठकें कर रहे हैं। हमारे आयातक जल्द ही अन्य स्रोतों से आने वाले तेल की मात्रा बढ़ाएंगे।’ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान से बात की। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘हमने वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा की। हाल के तनावों पर गहरी चिंता व्यक्त की। तत्काल तनाव कम करने, बातचीत और कूटनीति को आगे बढ़ने के रास्ते के रूप में और क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता की शीघ्र बहाली के लिए बात हुई।’ ईरान ने लगातार जोर दिया है कि वह युद्ध को बढ़ाना नहीं चाहता है, लेकिन इजरायल और अमेरिका की आक्रामकता का जवाब देगा।
युद्ध से उपजे संकट से भारत के आयात को सीधे तौर पर फिलहाल खतरा नहीं है, क्योंकि यह ईरान से कच्चे तेल का आयात नहीं करता है। लेकिन ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को अवरुद्ध करने का खतरा गहरा गया है। इस मार्ग से भारत द्वारा खरीदे गए सभी कच्चे तेल का आधे से अधिक और कम से कम 80 प्रतिशत प्राकृतिक गैस गुजरती है। इसलिए संकट की आशंका बनी हुई है। सरकारी तेल-विपणन कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि यदि ईरान जलडमरूमध्य को अवरुद्ध करने का प्रयास करता है तो इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से कच्चे तेल का पूरा प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
हालांकि ईरान ने कभी जलडमरूमध्य को अवरुद्ध नहीं किया है, लेकिन उसने इसे बंद करने की कई बार धमकी दी है। वर्ष 1986 में ईरान ने अपने जल क्षेत्र में लगभग 150 बारूदी सुरंगें बिछाई थीं, जिनमें से एक ने अमेरिकी नौसेना के फ्रिगेट यूएसएस सैमुअल बी. रॉबर्ट्स को लगभग डुबो दिया था।
ऐसे समय में खाड़ी को बंद करना ईरान के हित में भी नहीं है, जब वह अपने तेल को ज्यादा से ज्यादा बाहर निकालने का प्रयास कर रहा है। ब्लूमबर्ग ने पिछले सप्ताह रिपोर्ट में कहा था कि ईरान ने प्रमुख तेल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हमलों के डर से 13 जून से औसतन 2.33 मिलियन बैरल प्रति दिन (बी/डी) का निर्यात किया है।
अमेरिकी सरकार द्वारा ईरानी शासन पर भारी प्रतिबंध लगाए जाने के कारण अधिकांश देश आधिकारिक तौर पर ईरानी कच्चे तेल का सौदा नहीं करते हैं। लेकिन चीन सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है। वह ईरान के तेल निर्यात का 80-90 प्रतिशत खरीदता है, जो 2024 और 2025 की शुरुआत में औसतन 1.38-1.7 मिलियन बी/डी था। ऊर्जा प्रवाह को ट्रैक करने वाले वैश्विक समाचार संस्थान ने बताया कि मार्च 2025 में अमेरिकी प्रतिबंधों को कड़ा करने के डर के कारण आयात कथित तौर पर रिकॉर्ड 1.71-1.8 मिलियन बी/डी तक बढ़ गया।
आवाजाही में कठिनाइयां
समुद्री ट्रैकिंग प्रणाली स्वचालित पहचान प्रणाली (एआईएस) ने दिखाया कि टैंकर रविवार को पूरे क्षेत्र में घूमते रहे। वैश्विक तेल व्यापार मंच अल्पे ने एक बयान में कहा, प्रवाह की निरंतरता आश्वस्त करने वाली है, बाजार अभी भी वास्तविकता को नहीं, बल्कि जोखिम को महत्त्व देते हैं।
दूसरी ओर, एक फ्रांसीसी नौसेना निगरानी फर्म ने चेतावनी दी है कि सैन्य घटनाओं में वृद्धि के कारण खाड़ी में पिछले सप्ताह हर दिन लगभग 1,000 जहाजों ने लगातार और कभी-कभी गंभीर जीपीएस सिग्नल जैम का सामना किया है।
मैरीटाइम इन्फॉर्मेशन, कोऑपरेशन एंड अवेयरनेस (एमआईसीए) सेंटर ने एक्स पर कहा कि इससे ‘रात में खराब दृश्यता के कारण अथवा जब यातायात का दबाव अधिक होता है तो सुरक्षित रूप से आने-जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन के अनुसार, होर्मुहज जलडमरूमध्य दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों में से एक है, जो 2024 में 20 मिलियन बैरल प्रति दिन (बी/डी) या वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग 20% इधर से उधर ले जाता है। यह विश्व आपूर्ति की 25 एलएनजी भी इसी रास्ते से गुजरती है। क्षेत्र में बार-बार तनाव के कारण 2022 और 2024 के बीच होर्मुज जलडमरूमध्य से गुजरने वाले कच्चे तेल और कंडेन्सेट की मात्रा में 1.6 मिलियन बी/डी की गिरावट आई है। इक्रा के अनुसार, भारत के कच्चे तेल के आयात का लगभग 45-50% और इनबाउंड प्राकृतिक गैस का 54-60% इस गलियारे से होकर गुजरता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बंद होने से पहले युद्ध ने खुद शांघाई से अरब की खाड़ी के सबसे बड़े बंदरगाह जेबेल अली के व्यापार पर औसत स्पॉट दरों में एक महीने पहले की तुलना में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। औसत स्पॉट दरें अब 2761 डॉलर प्रति कंटेनर हैं। ईरान को शिपमेंट में पहले से ही माल भाड़ा प्रीमियम में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि समग्र समुद्री-हवाई लॉजिस्टिक्स लागत तेजी से बढ़ रही है। ईरान भारत के मध्य एशियाई व्यापार का प्रवेश द्वार भी है। जलडमरूमध्य को बंद करने का मतलब है अफ्रीका और केप ऑफ गुड होप के आसपास कार्गो का मार्ग परिवर्तन करना, जिससे ईंधन की कीमतों, मुद्रास्फीति और रुपये पर भारी दबाव पड़ेगा।