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सरकार रोकने चली महंगाई, आर्थिक मंदी गले पड़ी?

Last Updated- December 06, 2022 | 11:03 PM IST

अब इसे महंगाई रोकने की सरकारी कवायद के साइड इफेक्ट्स कहें या फिर महंगाई की ही मार, मगर देश में आर्थिक मंदी की पदचाप लगातार तेज होती जा रही है।


इसी कारण मार्च में देश के औद्योगिक उत्पादन में खासी गिरावट देखने को मिली। उद्योग जगत ने वित्तीय वर्ष 2007-08 के अंतिम माह में खराब प्रदर्शन किया और केवल तीन प्रतिशत की वृध्दि दर दर्ज की जबकि पूर्व वर्ष की समान अवधि में यह आंकड़ा 14.8 प्रतिशत था।


सरकार के लिए इसे खतरे की घंटी माना जा रहा है क्योंकि आसमान छूती महंगाई दर को नीचे लाने के लिए जिन कड़े उपायों को वह लगातार अंजाम दे रही थी, उससे आर्थिक मंदी आने की चेतावनी विशेषज्ञों का एक बड़ा खेमा लगातार दे रहा था। बहरहाल, औद्योगिक उत्पादन की वृध्दि दर समीक्षाधीन वर्ष में गिरकर 8.1 प्रतिशत रह गई, जो 2006-07 के दौरान 11.6 प्रतिशत थी।


गिरावट की मुख्य वजह विनिर्माण क्षेत्र का खराब प्रदर्शन रहा। औद्योगिक उत्पादन इन्डेक्स (आईआईपी) में विनिर्माण क्षेत्र का दो-तिहाई (करीब 80 फीसदी) योगदान होता है। इसकी खस्ताहालत का आलम यह था कि इसकी वृध्दि दर इस बार 2.9 प्रतिशत रही, जो पिछले साल मार्च में 16 प्रतिशत थी।


महंगाई की दवा के साइड इफेक्टस..


मार्च में महज तीन फीसदी रही वृध्दि दर, जबकि पूर्व वर्ष के समान माह में यह 14.8 फीसदी थी
2006-07 के 11.6 फीसदी के मुकाबले 2007-08 में आई 8.6 फीसदी पर
मैन्यूफैक्चरिंग की खस्ताहालत से हुई यह जबरदस्त गिरावट
अर्थव्यवस्था की विकास दर पर बुरा असर पड़ने के आसार


मंदी की डगर पर अर्थव्यवस्था?


                     मार्च 2007-08   –   मार्च 2006-07
विनिर्माण   :   2.9 फीसदी      –   16 फीसदी
बिजली     :    3.7 फीसदी     –   7.9 फीसदी
खनन      :   3.8 फीसदी    –    8 फीसदी


कब कितना रहा आईआईपी


मार्च 2007-08 –   3 फीसदी      
मार्च 2006-07 – 14.8 फीसदी
फरवरी 2007-08 – 8 फीसदी
जनवरी 2007-08 – ?5.3 फीसदी
2007-08 – 8.6 फीसदी
2006-07 – 11.6 फीसदी


क्यों हुई मैन्युफैक्चरिंग की खस्ता हालत


लागत खर्च के लगातार बढ़ते रहने और कच्चे तेल की कीमतों में लगी आग के कारण बढ़ती ट्रांसपोटर्ेशन कॉस्ट और महंगाई रोकने के कड़े कदमों के चलते कम होती मांग ने देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कमर तोड़ दी है।


औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) एक ऐसा पैमाना है, जिससे किसी विशेष समय अवधि के दौरान देश के औद्योगिक उत्पादन की विकास दर का पता चलता है। इस सूचकांक के लिए आंकड़े जुटाने और उन्हें जारी करने का काम केन्द्रीय सांख्यिकीय विभाग के जिम्मे है। इसे हर माह जारी किया जाता है। वैसे तो इसके उतार-चढ़ाव को नापने के लिए कुल 538 वस्तुएं हैं, जिन्हें 283 समूहों में बांटा गया है लेकिन इसमें विनिर्माण, बिजली और खनन तीन सेक्टरों के भारांक (वेटेज) सबसे अहम हैं।

First Published - May 13, 2008 | 12:05 AM IST

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