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अर्थव्यवस्था के लिए पहली तिमाही रही मिलीजुली

वैश्विक अनिश्चितता के साथ-साथ बेमौसम की बारिश व मॉनसून के जल्दी आने से औद्योगिक उत्पादन को नुकसान पहुंचा।

Last Updated- July 03, 2025 | 11:01 PM IST
आर्थिक तरक्की के रास्ते में चुनौतियां Challenges in the way of economic progress
प्रतीकात्मक तस्वीर

आर्थिक गतिविधियों के लिए अप्रैल से जून तिमाही (वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही) असमान रही। इस दौरान फैक्टरी उत्पादन, निर्यात और निजी पूंजीगत व्यय को चुनौतियों का सामना करना पड़ा जबकि सरकारी पूंजीगत व्यय बढ़ने के साथ खेती व सेवा क्षेत्रों जैसे यातायात व विनिर्माण ने जोर पकड़ा।

वैश्विक अनिश्चितता के साथ-साथ बेमौसम की बारिश व मॉनसून के जल्दी आने से औद्योगिक उत्पादन को नुकसान पहुंचा। शहरी मांग को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ग्रामीण मांग ने जोर पकड़ा। हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ही मांग ने जोर पकड़ा है। उनका अनुमान है कि पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 6-7 प्रतिशत के दायरे में रहेगी। यह एक तरह से वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही के 6.5 प्रतिशत वृद्धि के अनुरूप रहेगी। हालांकि यह राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के पिछली तिमाही के अनुमानित 7.4 प्रतिशत वृद्धि से कम रहेगी। एनएसओ इस तिमाही के आंकड़े अगस्त की समाप्ति में जारी करेगा।

इंडिया रेटिंग्स के सहायक निदेशक पारस जसराई ने बताया कि शुरुआती मॉनसून बारिश का औद्योगिक गतिविधियों विशेषतौर पर बिजली और खनन पर प्रतिकूल असर पड़ा लेकिन शुरुआती बारिश कृषि के लिए अच्छी है। आंकड़ों के मुताबिक रबी की अच्छी फसल होने के बाद इस साल खरीफ की बोआई करीब 10 प्रतिशत अधिक हुई है।

जसराई ने बताया, ‘इस साल गर्मियों में सामान्य से कम बारिश होने के कारण बिजली की मांग में गिरावट आई है। यह प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों का प्रत्यक्ष परिणाम है। शुल्क युद्ध और अप्रैल में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद निर्यात के खराब प्रदर्शन से पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्दि सुस्त रही थी। इस दौरान एकमात्र सकारात्मक बात यह रही कि इनपुट लागत अनुकूल रही। हमें पहली तिमाही में वृद्दि 6 से 6.5 प्रतिशत के दायरे में रहने की उम्मीद है।’

डीएसबी की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने बताया कि मॉनसून ने शुरुआत में जोर पकड़ा लेकिन जून के पहले पखवाड़े में सुस्त रहा। जून की समाप्ति पर दक्षिण पश्चिम मॉनसून ने कई क्षेत्रों में जोर पकड़ा। यात्री कारों की बिक्री व उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन मामूली रहा है और इस दौरान ऋण वृद्धि भी सुस्त रही। इसी तरह आईडीएफसी की चीफ इकॉनमिस्ट गौरा सेनगुप्ता ने कहा कि दोपहिया वाहनों और एफएमसीजी की बिक्री, इलेक्ट्रॉनिक भुगतान जैसे उच्च आवृत्ति संकेतक शहरी मांग में कमी की ओर इशारा करते हैं लेकिन ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि से ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिल रहा है।

First Published - July 3, 2025 | 10:46 PM IST

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