ऐसा लगता है कि कम से कम 2015-16 के दौरान विकास का लाभ केवल शहरी इलाकों तक ही सीमित रहा। बहुआयामी गरीबी पर नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 के दौरान एक ओर जहां देश में 25.01 फीसदी आबादी बहुआयामी गरीबी की चपेट में थी वहीं, ग्रामीण इलाकों में गरीबी अनुपात 32.75 फीसदी के उच्च स्तर पर था। उस वर्ष शहरी इलाकों में केवल 8.81 फीसदी आबादी ही बहुआयामी गरीबी की चपेट में थी।
कमोबेश यही हाल राज्यों और दिल्ली को छोड़कर केंद्र शासित प्रदेशों का रहा जहां गरीबों की अधिक तादाद गांवों में है। दिल्ली इमसें अपवाद होने की वजह यह है कि दिल्ली मुख्यतया एक शहरी राज्य है।
बहुआयामी गरीबी पर नीति आयोग की रिपोर्ट 2015-16 के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) पर आधारित है।
एनएफएचएस ने 2015-16 के दौरान शहरी इलाकों में 1,75,946 परिवारों और ग्रामीण इलाकों में 4,25,563 परिवारों का सर्वेक्षण किया। एनएफएचएस ने उस साल पांच सदस्यों का परिवार मानते हुए शहरी इलाकों में 8,74,730 लोगों और ग्रामीण इलाकों में 22.2 लाख लोगों का सर्वेक्षण किया गया।
इसका मतलब हुआ कि 2015-16 के दौरान के नमूना आकार में शहरी इलाकों में 77,064 लोग और ग्रामीण इलाकों में 7,29,544 लोग बहुआयामी गरीबी की चपेट में थे।
हम कैलेंडर वर्ष 2015 में आबादी के अनुपात में गरीबी का आकलन कर सकते हैं।
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में देश की कुल आबादी 1.31 अरब थी। इनमें से 67.22 फीसदी या मोटे तौर पर 88 करोड़ आबादी ग्रामीण इलाकों में थी जबकि शेष या 43 करोड़ शहरी इलाकों में थी। बहुआयामी गरीबी पर नीति आयोग के आंकड़ों का कुल आबादी के अनुपात में आकलन करें तो इससे पता चलता है कि 2015 में ग्रामीण इलाकों में 28.8 करोड़ आबादी और शहरी इलाकों में 3.8 करोड़ आबादी गरीबी की चपेट में थी।
2015-16 के लिए नीति आयोग की रिपोर्ट में दिए गए बहुआयामी गरीबी का उससे पहले के वर्षों से तुलना करने का कोई और रास्ता नहीं है क्योंकि ऐसी कोई रिपार्ट पहली बार जारी की गई है।
हालांकि, यदि पहले के योजना आयोग और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन रहे सी रंगराजन की अगुआई वाले समूह की रिपोर्ट पर नजर डालें तो उनके मुकाबले उक्त रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गरीबी अनुपात उतना स्पष्ट नहीं था।
गरीबी रेखा को लेकर तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि कुल ग्रामीण आबादी में गरीबों की हिस्सेदारी 33.8 फीसदी से घटकर 25.7 फीसदी रह गई जबकि कुल शहरी आबादी में गरीबों की हिस्सेदारी 29.8 फीसदी से कम होकर 21.9 फीसदी पर आ गई।
तेंदुलकर समिति ने शहरी इलाकों में 33 रुपये प्रतिदिन से कम और ग्रामीण इलाकों में 27 रुपये प्रतिदिन से कम खर्च करने वालों को गरीब माना था। गरीब रेखा के निर्धारण के लिए इस पैमाने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।
इसके बाद, सी रंगराजन की अगुआई वाला समूह एक दूसरी रिपार्ट लेकर आया। उस रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 में ग्रामीण आबादी में गरीबों की संख्या 30.9 फीसदी थी जो 2009-10 के दौरान 39.6 फीसदी रही थी। वहीं शहरी इलाकों में इस दौरान गरीबी 38.2 फीसदी से घटकर 29.5 फीसदी रह गई। इस रिपोर्ट में शहरी इलाकों में रोजाना 47 रुपये से कम और ग्रामीण इलाकों में रोजाना 32 रुपये से कम खर्च करने वाले को गरीब माना गया था।
