अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2026) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में 20-30 आधार अंकों की कमी आ सकती है। इसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाया गया 25 फीसदी का बड़ा आयात शुल्क (टैरिफ) है जो 1 अगस्त से लागू हो जाएगा।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर सीमित रहने की संभावना है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर ज्यादा निर्भर है और अमेरिका को होने वाला निर्यात अन्य विकासशील देशों के बाजारों की तुलना में कम है।
एचएसबीसी ने एक बयान में कहा, ‘इन टैरिफ दरों पर अगर बढ़े हुए शुल्क का बोझ भारतीय उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच बराबर बांट दिया जाए तब यह भारत की जीडीपी वृद्धि से सीधे तौर पर 0.3 प्रतिशत अंक कम कर सकता है। अगर कोई दंडशुल्क भी लगाया गया तब वृद्धि में और कमी आ सकती है और कम पूंजी प्रवाह और निवेश के कारण अप्रत्यक्ष रूप से भी वृद्धि धीमी हो सकती है।’
ट्रंप ने 25 फीसदी टैरिफ लगाने के अलावा, बुधवार को रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदने के लिए भारत पर दंडशुल्क लगाने की धमकी भी दे डाली।
डीबीएस बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव कहती हैं कि अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा निर्यात साझेदार है जो भारत के कुल निर्यात का 18 फीसदी है। इसमें स्मार्टफोन, फार्मा, कपड़ा, रत्न और आभूषण, लोहा और इस्पात, और मशीनरी जैसे सामान शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘साल के पहले छह महीनों में वस्तुओं का निर्यात ज्यादा रहा और अब दूसरे छह महीनों में इसमें कमी आने की संभावना है जब तक कि टैरिफ की सही दरें स्पष्ट नहीं हो जाती हैं। हमने पहले अनुमान लगाया था कि अगर सभी क्षेत्रों में एक जैसी दरें लागू होती हैं तब वृद्धि पर लगभग 25-30 आधार अंकों का असर पड़ सकता है।’
केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा कहती हैं कि अमेरिका को होने वाले भारत के निर्यात पर बढ़े हुए टैरिफ और संभावित दंडशुल्क को ध्यान में रखते हुए हमारा अनुमान है कि भारत की जीडीपी पर संभावित असर लगभग 0.3-0.4 प्रतिशत अंक हो सकता है।
उन्होंने यह भी कहा, ‘भारत की अर्थव्यवस्था घरेलू मांग पर आधारित है और अमेरिका को होने वाला हमारा निर्यात जीडीपी का लगभग 2 फीसदी है, इसलिए यह हमको उस झटके से कुछ हद तक बचाएगा। उम्मीद है कि आगे भारत-अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता जारी रहेगी जिससे कुछ राहत मिल सकती है।’मूडीज एनालिटिक्स की सहायक अर्थशास्त्री अदिति रमन की राय भी लगभग ऐसी ही है और वह कहती हैं कि भले ही अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अपने पड़ोसी देशों की तुलना में घरेलू जरूरतों पर अधिक निर्भर है और व्यापार पर इसकी निर्भरता कम है।
उन्होंने आगे कहा, ‘फार्मास्यूटिकल्स, रत्न और कपड़ा जैसे प्रमुख क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। एक और विवाद का मुद्दा कृषि और डेरी क्षेत्र तक बाजार पहुंच है, जिसे देने में भारत पहले से ही हिचकिचाता रहा है।’ गोल्डमैन सैक्स ने एक बयान में कहा कि अगर ये नए टैरिफ लागू किए जाते हैं तब भारत के जीडीपी पर 0.3 प्रतिशत अंक की कमी आ सकती है। यह अनुमान भारत के कुल निर्यात का लगभग 4 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका की मांग पर निर्भर होने के आधार पर लगाया गया है। गोल्डमैन सैक्स ने घरेलू निवेश पर अप्रत्यक्ष असर होने की भी चेतावनी दी। इसने कहा, ‘अमेरिका में बढ़ती नीतिगत अनिश्चितता को देखते हुए वैसे भारतीय कंपनियां अपने निवेश फैसलों को टालने पर मजबूर हो सकती हैं जो अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित होंगी।’
इस बीच, नोमूरा एशिया ने एक नोट में कहा कि वित्त वर्ष 2026 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान 6.2 फीसदी पर बनाए रखा है लेकिन इसमें 0.2 फीसदी अंक की गिरावट का जोखिम बताया गया है। इसका कारण यह है कि अमेरिका को होने वाला निर्यात भारत की जीडीपी का 2.2 फीसदी है। इसमें फार्मा, स्मार्टफोन, रत्न व आभूषण, औद्योगिक मशीनरी, वाहनों के कलपुर्जे, कपड़ा और लोहा व इस्पात जैसे क्षेत्र शामिल हैं जिनमें से अधिकांश को मुनाफे में कमी का सामना करना पड़ सकता है।