भारत में चीनी इस्पात आयात के इजाफे से चिंतित देश के इस्पात उत्पादकों का अग्रणी संगठन इंडियन स्टील एसोसिएशन (आईएसए) इस संबंध में शीघ्र उपाय की मांग करते हुए यह मामला सरकार के पास ले जाने की योजना बना रहा है।
आईएसए के महासचिव आलोक सहाय ने कहा कि व्यापार के सुधारात्मक उपायों में प्रणालीगत बदलावों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत में कम शुल्क होने की वजह से कोई भी व्यापारिक उपाय करने में कम से कम 15 महीने का समय लगता है, जिससे भारत आसान लक्ष्य बन जाता है। हम इस संबंध में सरकार को पत्र लिखने जा रहे हैं। सहाय ने कहा कि समान अवसर के लिए निर्यातक देशों द्वारा पैदा की गई व्यापारिक विकृतियों का समय रहते और प्रभावी ढंग से मुकाबला करना होगा।
आईएसए से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 24 की अप्रैल-जुलाई अवधि के दौरान चीन से 5,70,000 टन तैयार इस्पात का आयात किया गया था, जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 63 प्रतिशत अधिक है। कोरिया से 6,85,000 टन आयात किया गया था, जो पिछले वर्ष से चार प्रतिशत कम है। संयुक्त संयंत्र समिति (जेपीसी) के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
चीन में संपत्ति बाजार संकट में आने के बाद से वहां मांग नरम पड़ गई है। हालांकि चीन में उत्पादन बढ़ा है और भारत में मजबूत मांग से चीनी इस्पात मिलों को अपने उत्पादों का निर्यात करने का अवसर मिल रहा है।
जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी जयंत आचार्य ने कहा कि एक ओर वैश्विक इस्पात उत्पादन में कमी आई है, दूसरी ओर चीन में जनवरी-जुलाई 2023 के दौरान उत्पादन 2.5 प्रतिशत बढ़कर 62.7 करोड़ टन हो गया है।
उन्होंने कहा ‘चीन में घरेलू मांग नरमी बनी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप चीन से अधिक इस्पात निर्यात हो रहा है। नतीजतन चीन से इस्पात निर्यात 28 प्रतिशत बढ़कर 5.1 करोड़ टन हो गया है।’
आचार्य ने कहा कि कमजोर वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण के बीच भारत आशाजनक कुछ स्थानों में से एक बना हुआ है, जिससे यह अनुचित कीमतों पर बढ़ते आयात से जोखिमपूर्ण स्थिति में आ गया है। प्रमुख इस्पात मिलों के अनुसार चीनी आयात से कीमतों पर असर पड़ रहा था।