महामारी संबंधी प्रतिबंधों को हटाने के बाद राज्यों के राजस्व में सुधार हुआ है जिसकी बदौलत राज्यों ने पिछले वर्ष के मुकाबले अपने घाटों को 100 प्रतिशत अंक के बराबर कम किया है। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से मंगलवार को जारी की गई रिपोर्ट से सामने आई है।
हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी से स्थानीय निकायों को बहुत अधिक धक्का लगा है और उन्हें कार्य करने में स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए राज्यों ने समेकित सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) को सकल घरेलू अनुपात (जीडीपी) के 3.7 फीसदी पर रखा है। रिजर्व बैंक की राज्य वित्त रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह अनुपात महामारी की पहली लहर वाले वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमान में 4.7 फीसदी के स्तर से उल्लेखनीय सुधार को दर्शाता है।’
हालांकि, शहरी स्थानीय निकायों जैसे स्थानीय सरकार अत्यधिक दबाव में आईं जिससे उन्हें अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी और विभिन्न स्रोतों से धन जुटाना पड़ा।
स्थानीय निकायों को तीसरी श्रेणी का दर्जा देते हुए रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी प्रबंधन का अधिकांश भार इन्हीं निकायों के ऊपर पड़ा। नगरपालिकाओं और ग्राम पंचायतों ने रोकथाम की रणनीतियों, स्वास्थ्य देखाभल, पृथक्करण और जांच सुविधाओं को लागू किया तथा टीकाकरण शिविर लगाए। इसके अलावा जरूरी सामानों तथा सेवाओं की आपूर्ति की जिम्मेदारी भी उन्हीं के ऊपर थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी ने वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 में देश में स्थानीय सरकारों के वित्त को सबसे खराब स्थिति में पहुंचा दिया। स्थानीय प्राधिकरणों को 2021 में अपने राजस्वों में 15-25 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा जिसके कारण मौजूदा स्तर के सेवा की आपूर्ति में मुश्किल हो सकती है।
महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों में ग्राम पंचायतों को धन के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसी तरह की समस्या शहरी क्षेत्र के स्थानीय निकायों को भी झेलनी पड़ी। रिजर्व बैंक ने देश भर में 141 नगर निगमों का सर्वेक्षण कर यह नतीजा निकला है।
