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निजी क्षेत्र में दिख रहे पूंजीगत व्यय के संकेत

Last Updated- December 11, 2022 | 7:47 PM IST

बीएस बातचीत

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन का कहना है कि ऊंची महंगाई भारतीय अर्थव्यवस्था पर चोट कर सकती है। नागेश्वरन मानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए 7.2 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर का जो संशोधित अनुमान दिया है वह वाजिब है और आंकड़ा इससे नीचे नहीं जाएगा। अरूप रॉयचौधरी ने ईमेल के जरिये उनका साक्षात्कार किया। मुख्य अंश:
कोविड-19 महामारी की तीन लहरों से जूझने के बाद महंगा तेल और आपूर्ति व्यवस्था  में व्यवधान भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष नई चुनौतियां बन गए हैं। तेजी से बदलती परिस्थितियों के बीच 2022-23 में देश की अर्थव्यवस्था की चाल कैसी रहेगी?
अर्थव्यवस्था ने मजबूती से चुनौतियों का सामना किया है। कोविड महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था में गिरावट का अनुमान जताया गया था मगर अब कहा जाने लगा है कि गिरावट इस अनुमान से कम ही रहेगी। मगर जिंसों की ऊंची कीमतों, खासकर कच्चे तेल के ऊंचे दाम नकारात्मक असर जरूर छोड़ेंगे। संभवत: इसी वजह से आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वृद्धि दर का अनुमान 7.8 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है। तेल का आयात अधिक होने चालू खाते का घाटा भी बढ़ेगा। आर्थिक सुधार तेज होने से तेल एवं सोने को छोड़कर दूसरी वस्तुओं का आयात भी बढ़ेगा।

एक कार्यक्रम के दौरान आपने कहा था कि अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि और कच्चे तेल के दाम में उतार-चढ़ाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कठिन चुनौती पेश कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि चीन में लॉकडाउन और महामारी की एक और लहर आने की आशंका दूसरी बड़ी  बाधा होगी?
कोविड महामारी के नए मामले जरूर बढ़ रहे हैं मगर इस पर कुछ कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी। फिलहाल हमारे पास कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर संक्रमण का नया दौर चालू वित्त वर्ष में लंबी अवधि तक नहीं रहा तो अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ेगा।

कई लोग तंज कर रहे हैं कि सरकार रोजगार सृजन रहित आर्थिक वृद्धि का ढोल पीट रही है। आपकी नजर में  महामरी के बाद रोजगार की समस्या कितनी है और इससे कैसे निपटा जा  सकता है?
रोजगार सृजन निकट भविष्य और दीर्घ अवधि दोनों के लिहाज से सरकार की प्राथमिकता है। सरकार ने इसे काफी गंभीरता से लिया है। सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न राजकोषीय एवं गैर-राजकोषीय नीतिगत कदम भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्यक्ष रकम भेजने के मुकबाले पूंजीगत व्यय रोजगार सृजन का अधिक प्रभावी जरिया साबित होता है। यही वजह है कि सरकार ने अधिक पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र मांग की स्थिति स्पष्ट होने का अब भी इंतजार कर रहा है। हालांकि निजी क्षेत्र से भी उत्साह के संकेत मिलने लगे हैं। सरकार ने छोटे कारोबारों को बंद होने से बचाने के लिए ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाई और उन्हें आपात ऋण सहायता दी। अगर छोटे कारोबार बंद हो जाते तो बेरोजगारी और बढ़ जाती। अगर राहत के ये उपाय नहीं किए गए होते तो परिणाम क्या होते इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। एक ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश के श्रम बाजार में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।    
चालू वित्त वर्ष के बजट में पूंजीगत व्यय पर काफी जोर दिया गया है। यूक्रेन संकट और तेल के दाम पर इसके प्रभाव को देखते हुए बजट ऊंची महंगाई और ब्याज भुगतान, राजस्व एवं व्यय आदि मोर्चों पर चुनौतियों से सहजता से निपट पाएगा? क्या राजकोषीय पारदर्शिता के लिए संसद में नए आंकड़े पेश करना चाहिए?
बजट में किए गए उपाय इन चिंताओं से निपटने के लिए संभवत: पर्याप्त साबित होंगे।
करदाताओं की संख्या और जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
इस दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं। कम दरों के साथ काफी कम रियायत, मानवीय हस्तक्षेप के बिना कर आकलन, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के बीच जानकारी का संयोजन आदि कुछ उपाय गिनाए जा सकते हैं। इन उपायों से फायदा दिख रहा है और आने वाले समय में भी इनसे लाभ मिलेंगे।
सरकार पर कर्ज एवं ब्याज भुगतान का बोझ बढ़ता जा रहा है। इस पर आपकी क्या राय है?
भारत कर्ज चुकाने के लिए सहज स्थिति में है और सरकार मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती पर ध्यान दे रही है।

First Published - April 18, 2022 | 11:43 PM IST

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