डॉलर के मुकाबले रुपया भले ही 17 महीने के निम्तम स्तर पर आ गया हो लेकिन वस्तुओं के निर्यातकों के चेहरे पर मुस्कान नहीं दौड़ रही है।
भारतीय निर्यात संगठन महासंघ के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि रुपये में इस तरह की गिरावट का अंदाजा किसी को नहीं था। इससे केवल उन निर्यातकों को फायदा होगा जिन्होंने डॉलर में कमाई को हेज नहीं किया है। उनका आकलन है कि 60 फीसदी से ज्यादा निर्यातकों ने डॉलर के मुकाबले 41 से 43 रुपये के बीच हेज कर रखा है।
निर्यातक डॉलर के मुकाबले रुपये में हेजिंग अपनी कमाई बचाने के लिए करते हैं। इस प्रकार अगर कोई निर्यातक डॉलर के मुकाबले 44 रुपये में हेज करता है, तो उसकी वास्तविक कमाई उतनी ही होगी, जितने में उसने हेज किया था। टेक्सटाइल निर्यातक ओरिएंट क्राफ्ट के अध्यक्ष और महाप्रबंधक सुधीर ढींगरा ने कहा कि हमने प्रति डॉलर 38 से 42 रुपये की रेंज में हेज किया था। इसलिए हमें हाल की 44 रुपये की विनिमय दर का लाभ नहीं मिलेगा।
इंजीनियरिंग निर्यात संवर्ध्दन परिषद के अध्यक्ष राकेश शाह भी इसी मत से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्यातकों को यह सलाह दी थी कि वे रुपये में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए समायोजन करें। इसी को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे निर्यातकों ने हेज करना शुरू किया था। लेकिन किसी ने भी उस दर पर हेजिंग नहीं की थी, जो आज देखने को मिल रही है।
चमड़े के निर्यातक दावा कर रहे हैं कि उन्हें इस विनिमय दर से ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है, क्योंकि उनके ज्यादातर निर्यात यूरोपीय संघ के देशों और ब्रिटेन में होते हैं। चमड़ा निर्यात परिषद के अध्यक्ष मुख्तरूल मईन ने कहा कि रुपये के मुकाबले यूरो की कीमत नीचे आई है। ऐसे चमड़ा निर्यातक जिन्होंने डॉलर में हेज किया है, उन्हें फायदा पहुंच सकता है।
अर्थशास्त्री भी इस बात को मानते हैं कि रुपये में हाल की गिरावट के बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था। यस बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री शुभदा राव कहती हैं कि हमलोगों ने दिसंबर के अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपये को 42 तक पहुंचने का अनुमान लगाया था।