वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के तहत जारी नोटिस पर अब केवल क्षेत्राधिकारी फैसला कर पाएंगे। इस नए प्रावधान के बाद करदाताओं को राहत मिली है।
जीएसटी व्यवस्था में निर्गत नोटिस पर फैसला करने का अधिकार पहले अंके क्षण एवं जांच अधिकारियों के पास था। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क (सीबीआईसी) की ओर से जारी परिपत्र के अनुसार यह अधिकार अब उनसे ले लिया गया है।
नई व्यवस्था के प्रभाव में आने के बाद अंकेक्षण आयुक्तालय के केंद्र कर अधिकारी और वस्तु एवं सेवा कर खूफिया महानिदेशक (डीजीजीआई) केवल नोटिस जारी कर सकते हैं और अतिरिक्त सूचनाएं मांग सकते हैं। अंकेक्षण अधिकारी या जांच अधिकारी या किसी क्षेत्राधिकारी द्वारा नोटिस जारी होने पर संबंधित करदाता पूर्व व्यवस्था के प्रावधानों के अनुरूप त्रुटियां दूर करने के लिए संबंधित अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अंकेक्षण एवं जांच अधिकारी नोटिस पर पूरी गंभीरता से विचार नहीं करते थे और कर मांग में संशोधन नहीं करते थे। एएमआरजी ऐंड एसोसिएट्स में वरिष्ठ पार्टनर रजत मोहन ने कहा, ‘अंकेक्षण आयुक्तालय और डीजीजीआई के अधिकार अब सीमित कर दिए गए हैं। अब वे केवल कारण बताओ नोटिस ही भेज सकते हैं। नोटिस पर कोई फैसला करने का अधिकार सक्षम क्षेत्राधिकारियों के सुपूर्द कर दिया जाएगा।’ मोहन ने कहा कि इस नई व्यवस्था से लाखों करदाताओं को राहत मिलेगी। पुरानी व्यवस्था में नोटिस लंबे समय तक विचाराधीन रहता था। क्षेत्राधिकारियों को उन मामलों अखिल भारतीय आधार पर निर्णय लेने का धिकार दिया गया है जिनमें एक ही विषय कई नोटिस भेजे गए हैं या करदाता का मुख्य कार्य स्थान अलग-अलग अधिकारियों के क्षेत्राधिकार में पड़ता है।
