नैशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा जारी एक शोधपत्र में कहा गया है कि राज्यों को अपनी संस्थागत क्षमता मजबूत करने के लिए शिक्षाविदों, वित्तीय बाजार के हिस्सेदारों व अन्य विशेषज्ञों की स्वतंत्र राजकोषीय परिषदों का गठन करना चाहिए।
एनसीएईआर की महानिदेशक पूनम गुप्ता और और विजिटिंग मानद प्रोफेसर बैरी आइचेनग्रीन द्वारा लिखित शोध पत्र ‘द स्टेट ऑफ स्टेट्स: फेडरल फाइनैंस इन इंडिया’ में कहा गया है कि राजकोषीय परिषद की रिपोर्टें राज्य सरकार के राजस्व और व्यय के पूर्वानुमानों की वास्तविकता का आकलन करेंगी और अपने स्वयं के पूर्वानुमान प्रस्तुत करेंगी। शोध पत्र में कहा गया है, ‘वे आकस्मिक देनदारियों के मिलने की संभावना का स्वतंत्र विश्लेषण प्रदान करेंगी।’
यूरोपीय संघ को उदाहरण के रूप में पेश करते हुए लेखकों ने कहा है कि इसकी एक तुलनात्मक व्यवस्था मौजूद है। इसमें कहा गया है, ‘यूरोपीय आयोग के राजकोषीय नियमों में सर्वाधिक नए सुधार में संघ के स्तर पर एक प्रकार की अर्ध-राजकोषीय परिषद के रूप में कार्य करना, सदस्य राज्यों के पूर्वानुमान प्राप्त करना, उनका आकलन करना, अपने खुद के अनुमान प्रस्तुत करना शामिल है। साथ ही प्रत्येक राज्य को राज्य स्तर पर अपने राजकोषीय परिषद का गठन करना आवश्यक है, जो बजट के परिदृश्य का आकलन करेगी।’
इसके पहले कई निकायों ने केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय परिषद की सिफारिश की थी। तेरहवें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि प्रस्तावित राजकोषीय परिषद स्वायत्त निकाय होनी चाहिए, जो वित्त मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपे। मंत्रालय को परिषद द्वारा निपटाए गए मामलों पर संसद को आगे रिपोर्ट करनी चाहिए।
एफआरबीएम समीक्षा के लिए बनी एनके सिंह समिति ने भी केंद्र सरकार के लिए राजकोषीय समिति के गठन की सिफारिश की थी।