RBI rate cut: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जून 2025 में अपनी ब्याज दर में आधा प्रतिशत यानी 0.5% की कटौती कर सकता है। यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को नए सिरे से बढ़ावा देने के लिए जरूरी माना जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कटौती से महंगाई नियंत्रण में रह सकेगी और साथ ही आर्थिक ग्रोथ को भी बढ़ावा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि साथ ही बैंकिंग सेक्टर में ब्याज दरों के बदलाव को और प्रभावी बनाने के लिए कुछ नई नीतियां और नियम लागू करने की जरूरत है। इससे बैंकिंग सिस्टम की स्थिरता और भी मजबूत होगी।
दुनिया भर की अर्थव्यवस्था धीमी गति से बढ़ रही है, और IMF की ताजा रिपोर्ट में यह साफ दिखाया गया है कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आएगी। खासतौर पर चीन की आर्थिक वृद्धि मंद पड़ रही है, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन के सामने रियल एस्टेट संकट, सरकारी वित्तीय दबाव और उपभोक्ता विश्वास में कमी जैसी चुनौतियां हैं, जो उसकी विकास दर को प्रभावित कर रही हैं। IMF ने चीन की वृद्धि दर को 4% तक कम कर दिया है, जो पिछले अनुमानों से काफी नीचे है।
भारत की स्थिति हालांकि बेहतर बनी हुई है। भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 की आखिरी तिमाही में 7.4% की वृद्धि दर्ज की, जो पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा कम है लेकिन फिर भी विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले देशों में शामिल है। भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश और उपभोक्ता खर्च लगातार मजबूत बने हुए हैं, जिससे अगले वित्त वर्ष में 6.3% से 6.5% तक की वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है। इससे भारत वैश्विक मंदी के बीच अपनी आर्थिक मजबूती बनाए रख सकेगा।
महंगाई को नियंत्रित करने में इस बार मौसम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इस साल मॉनसून अच्छा रहने की उम्मीद है, जिससे दाल, सब्जियां और अन्य खाद्य सामग्री की कीमतों में स्थिरता बनी रहेगी। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतें भी कम बनी हुई हैं, जो महंगाई को बढ़ने से रोकने में मदद कर रही हैं। इस वजह से विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक महंगाई दर लगभग 3.5% के आसपास रह सकती है, जो कि RBI के लक्ष्य के करीब है। यह स्थिति आम जनता के लिए राहत भरी होगी क्योंकि इससे खाने-पीने और अन्य जरूरी सामान की कीमतें नियंत्रित रहेंगी।
यह भी पढ़ें…मई में मैन्युफैक्चरिंग PMI फिसलकर 57.6 पर, तीन महीने का निचला स्तर; डिमांड बनी रही मजबूत
मार्च 2025 तक बैंकिंग सिस्टम में अच्छी लिक्विडिटी बनी हुई थी, यानी बैंक के पास पर्याप्त पैसा उपलब्ध था। इस लिक्विडिटी को बढ़ाने के लिए RBI की तरफ से भी कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे जून तक स्थिति और बेहतर हो जाएगी। सरकारी बैंकों ने वित्त वर्ष 2024-25 में अच्छा मुनाफा कमाया है, जबकि निजी बैंकों का मुनाफा अपेक्षाकृत कम रहा है। यह दिखाता है कि सरकारी बैंक अभी भी आर्थिक गतिविधियों में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
हालांकि, बैंकिंग सेक्टर में कर्ज की मांग में कमी आई है। कर्ज वृद्धि की गति धीमी पड़ गई है, जिसका मतलब यह है कि नए कर्ज लेने वाले लोग अब ज्यादा सावधानी बरत रहे हैं। लेकिन बैंक में जमा धन और सावधि जमा की मात्रा बढ़ने से लिक्विडिटी बनी हुई है। खासकर आवासीय कर्ज की मांग स्थिर बनी हुई है, जो हाउसिंग सेक्टर की मजबूती का संकेत है। बैंकिंग सिस्टम में इस तरह की लिक्विडिटी और जमा राशि की वृद्धि से वित्तीय स्थिरता बनी रहती है।
अमेरिका में वित्तीय घाटा इस साल बढ़ गया है, लेकिन आयात में कमी से व्यापार घाटा थोड़ा घटा है। इसके बावजूद, अमेरिका में ब्याज दरें अभी भी हाई बनी हुई हैं, जो व्यापार और निवेश पर दबाव डाल रही हैं। अमेरिका की यह स्थिति वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए भी एक चिंता का विषय बनी हुई है।
चीन की आर्थिक हालत और भी मुश्किल होती जा रही है। वहां की प्रॉपर्टी से जुड़ी दिक्कतें और स्थानीय सरकारों के पास कम पैसा होने की वजह से देश की तरक्की की रफ्तार धीमी हो रही है। लोग खरीदारी को लेकर भी भरोसे में नहीं हैं, जिससे हालात और बिगड़ रहे हैं। इन सब वजहों से चीन की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे नीचे जा रही है, और इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है।