रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के छह में से दो बाहरी सदस्यों ने नीतिगत रेपो रेट में कटौती का जोरदार समर्थन किया है। यह दर फरवरी 2023 से अब तक नहीं बदली है। आज जारी जून की मीटिंग के मिनट्स में यह जानकारी सामने आई है।
इन सदस्यों ने नीति रुख को भी न्यूट्रल करने के पक्ष में मत दिया है। हालांकि, आंतरिक सदस्यों ने खाद्य महंगाई के जोखिम का हवाला देते हुए यथास्थिति बनाए रखने की बात कही और कहा कि महंगाई को कम करने में अभी और वक्त लगेगा।
आसान शब्दों में कहें तो रिज़र्व बैंक की मीटिंग में यह तय होता है कि बैंकों को कितना सस्ता लोन मिलेगा। इस बार मीटिंग में 2 बाहरी सदस्यों ने बैंकों को कम ब्याज पर लोन देने की बात कही, ताकि बाजार में पैसा आए और चीज़ें सस्ती हों। वहीं, बाकी सदस्यों का कहना है कि अभी खाने-पीने की चीज़ें महंगी हैं, तो फिलहाल ब्याज दर ना बदली जाये।
आशिमा गोयल ने कहा, “सतर्क रहना अक्सर सराहनीय होता है,” जिन्होंने रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती करने और रुख को न्यूट्रल करने के लिए मतदान किया। उन्होंने इस विचार के खिलाफ तर्क दिया कि मजबूत ग्रोथ सख्त मौद्रिक नीति की अनुमति देता है, उन्होंने कहा कि ग्रोथ क्षमता से कम है और खपत कमजोर होने के कारण यह और भी धीमी हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा, “देश में अगर बेरोज़गारी ज़्यादा रहेगी तो यह अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों के लिए अच्छा नहीं है। अगर रोज़गार नहीं बढ़ेंगे तो सरकार को गरीबों को पैसा देने के लिए अमीरों से बहुत ज्यादा पैसा लेना पड़ सकता है। इससे अमीर अपना पैसा देश से बाहर ले जा सकते हैं, जिससे भारत की तरक्की रुक जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि अभी भारत में ज़्यादा बेरोज़गारी है और देश को ऐसे उद्योगों की तरफ ले जाना है जिनसे ज्यादा चीज़ें बनें। ऐसे में ब्याज दरों को ना तो बहुत कम रखना चाहिए ना ही बहुत ज़्यादा। उन्होंने बताया कि अभी महंगाई कम हो गई है लेकिन इस वजह से ब्याज दरें असल में बढ़ गई हैं। इससे व्यापार धीमा पड़ सकता है। एक और अर्थशास्त्री जयंत आर वर्मा का मानना है कि अगर ब्याज दरें कम होंगी तो इससे देश की तरक्की में मदद मिलेगी।
वर्मा ने कहा, “ऐसा लगता है कि अगर बहुत लंबे समय तक सख्त नीतियों को जारी रखा गया, तो वित्त वर्ष 26 में भी आर्थिक विकास धीमा रहने का खतरा है।”
वर्मा ने यह भी कहा कि मौजूदा रियल पॉलिसी रेट, जो लगभग 2 प्रतिशत है (अनुमानित मुद्रास्फीति के आधार पर), मुद्रास्फीति को उसके लक्ष्य तक ले जाने के लिए आवश्यक स्तर से काफी ऊपर है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखने का कारण ‘लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति’ है।
दास ने चेतावनी दी कि “जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी कदम फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा। यह जरूरी है कि मुद्रास्फीति को टिकाऊ रूप से 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य के पास रखा जाये।”