भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष के अंत में नकदी की तंगी से बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय बैंक ने ₹1.87 लाख करोड़ की अतिरिक्त लिक्विडिटी डालने का ऐलान किया है, जिससे बैंकिंग सिस्टम को अधिशेष में लाने की कोशिश की जा रही है। इससे न केवल बैंकों को राहत मिलेगी, बल्कि कर्ज की ब्याज दरों में भी गिरावट आ सकती है। हाल ही में फरवरी में 25 बेसिस प्वाइंट की रेपो रेट कटौती के बावजूद बाजार में ब्याज दरों में अधिक गिरावट नहीं देखी गई थी, जिसका एक प्रमुख कारण लिक्विडिटी की कमी थी।
RBI के नए फैसले और उनकी अहमियत
RBI ने ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के तहत सरकारी बॉन्ड खरीदने का फैसला किया है, जिसके तहत दो चरणों में ₹1 लाख करोड़ के बॉन्ड खरीदे जाएंगे। पहली नीलामी 12 मार्च को और दूसरी 18 मार्च को होगी। इसके अलावा, RBI ने डॉलर-रुपया (USD/INR) खरीद-बिक्री स्वैप नीलामी करने का भी फैसला किया है, जिससे लगभग $10 बिलियन (₹83,000 करोड़) की नकदी बाजार में आएगी। इन उपायों से बैंकों को राहत मिलेगी और वित्तीय प्रणाली में तरलता की स्थिति बेहतर होगी।
बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी क्यों?
हाल के महीनों में बैंकिंग सिस्टम को लगातार नकदी की तंगी का सामना करना पड़ा है। 6 मार्च तक बैंकिंग प्रणाली में ₹55,000 करोड़ का नकदी घाटा था और पिछले 11 हफ्तों से यह समस्या बनी हुई थी। RBI ने पहले भी जनवरी और फरवरी में $15 बिलियन (₹1.25 लाख करोड़) के USD/INR स्वैप और ₹60,000 करोड़ के OMO के जरिए लिक्विडिटी डालने की कोशिश की थी, लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से प्रभावी नहीं रहे।
नवंबर 2024 में बैंकिंग सिस्टम में ₹1.35 लाख करोड़ की नकदी अधिशेष थी, लेकिन यह स्थिति दिसंबर में बदल गई और नकदी घाटा बढ़ता गया। जनवरी में यह घाटा ₹2.07 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जबकि फरवरी में ₹1.59 लाख करोड़ का घाटा बना रहा।
ब्याज दरों और बैंकिंग सेक्टर पर प्रभाव
RBI के इन उपायों से बैंकों को अतिरिक्त नकदी मिलने की उम्मीद है, जिससे वे डिपॉजिट दरों को कम कर सकते हैं और कर्ज की ब्याज दरों को नीचे लाने में मदद मिल सकती है। फेडरल बैंक के कार्यकारी निदेशक हर्ष दुगर के अनुसार, नए उपाय बैंकों को यह विश्वास दिलाएंगे कि वे जमा दरों को कम कर सकते हैं और इससे कर्ज देने की लागत में भी कमी आएगी। नोमुरा की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि RBI अब लिक्विडिटी की स्थिति को घाटे से हटाकर अधिशेष में लाने की कोशिश कर रहा है, ताकि बाजार में नीतिगत दरों का बेहतर प्रसार हो सके।
विदेशी मुद्रा बाजार और बॉन्ड यील्ड पर असर
RBI ने हाल के महीनों में विदेशी मुद्रा बाजार में भी दखल दिया है ताकि रुपये की तेज गिरावट को रोका जा सके। इस हस्तक्षेप के कारण भी बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी हुई। इसके अलावा, सरकार की ओर से कर भुगतान और पूंजी प्रवाह में उतार-चढ़ाव के कारण भी लिक्विडिटी प्रभावित हुई। फरवरी में रेपो रेट में कटौती के बावजूद, कॉरपोरेट बॉन्ड और राज्य सरकार की सिक्योरिटीज पर मिलने वाले ब्याज में बढ़ोतरी हुई, जिससे बाजार में ब्याज दरें अपेक्षित रूप से कम नहीं हो पाईं।
आने वाले महीनों में क्या होगा असर?
DBS बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव का मानना है कि RBI की यह रणनीति बताती है कि वह नकदी की स्थिति को अधिशेष में ले जाना चाहता है, जिससे ब्याज दरों पर दबाव कम होगा। बंधन म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम प्रमुख सुयश चौधरी के अनुसार, RBI के ये कदम उम्मीद से बड़े हैं और संकेत देते हैं कि मई के अंत तक कोर लिक्विडिटी अधिशेष में आ सकती है। इससे बैंकिंग सेक्टर, निवेशकों और कर्ज लेने वालों को फायदा होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।