राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएसएच) 2019-21 द्वारा 24 नवंबर को जारी आंकड़ों में देश में प्रति 1,000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं होने का अनुमान जताया गया है। मगर जनसंख्या विज्ञानियों का कहना है कि यह अनुमान वास्तविकता से अधिक है और जमीनी स्तर पर असली आंकड़ों को नहीं दर्शाता।
स्वास्थ्य मंत्रालय का स्वायत्त संस्थान अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) यह सर्वेक्षण करता है। इस संस्थान ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि किसी भी सर्वेक्षण में स्त्री-पुरुष अनुपात का अनुमान वास्तविक आंकड़ों से अधिक ही रहेगा क्योंकि ये आंकड़े परिवार के स्तर पर एकत्र किए जाते हैं। आईआईपीएस के निदेेशक और वरिष्ठ प्रोफेसर केएस जेम्स ने कहा, ‘सर्वेक्षण में पुरुषों के प्रभुत्व वाले कई क्षेत्रों जैसे संस्थानों, बेघरों, सेना, छात्रावास आदि को शामिल ही नहीं किया जाता। इस आबादी को सर्वेक्षण के नतीजो में जगह नहीं दी जाती।’
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में प्रति 1,000 पुरुषों पर 943 महिलाएं था। इस जनगणना में अनुमान जताया गया था कि यह 2036 में आंकड़ा बढ़कर 952 हो जाएगा। 2015-16 में स्त्री-पुरुष अनुपात 991 था, जो इस बार 29 अंक बढ़कर 1020 हो गया। विशेषज्ञों ने कहा कि एनएफएचएस के पिछले दौर में कुल स्त्री-पुरुष अनुपात में भिन्नता नजर आई है। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा, ‘यह अप्रत्याशित रुझान है, जिसके लिए और सबूतों और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।’
कुछ विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि यह विषय सुर्खियों में इसलिए बना हुआ है क्योंकि ताजा सर्वेक्षण ने दर्शाया है कि महिलाओं की संख्या पुरुषों से आगे निकल गई है। ऑक्सफैम इंडिया के अमिताभ कुंडू ने कहा, ‘एनएफएचएस 5 को कम से कम अपने फुटनोट में सख्त चेतावनी लिखनी चाहिए कि उसके स्त्री-पुरुष अनुपात के आंकड़े कुल आबादी के लिए वैध नहींं होने के आसार हैं क्योंकि शोधार्थी और नीति-निर्माता उसके प्रकाशनों को प्रतिष्ठिïत मानते हैं।’
कुंडू ने कहा कि महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होने की तस्वीर का लिंग चयन गर्भपात, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संपत्ति के अधिकारों में महिलाओं की अनदेखी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। हालांकि आईआईपीएस ने कहा कि उसके आंकड़ों का अध्ययन सालाना आधार पर स्त्री-पुरुष अनुपात में बढ़ोतरी के संदर्भ में किया जाना चाहिए। जामेस ने कहा, ‘इससे पता चलता है कि देश में महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा बेहतर बन रही है।’
उन्होंने यह भी कहा कि लैंगिक संतुलन को समझने के लिए जन्म के समय स्त्री-पुरुष अनुपात को नजदीक से देखा जाना चाहिए। यह 2019-21 में प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 यानी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के कम होने को दर्शाता है। लेकिन यह आंकड़ा 2015 के 919 की तुलना में सुधरा है। हालांकि यह अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के ‘प्राकृतिक’ स्त्री-पुरुष अनुपात के अनुमान से कम है। उन्होंने कहा कि ‘जन्म पर असंतुलित स्त्री-पुरुष अनुपात भारत में बेटे को प्राथमिकता और लिंग चयन की गतिविधियों के जारी रहने को दर्शाता है।’ क्या एनएफएचएस-5 के स्त्री-पुरुष अनुपात के आंकड़े वास्तविक आंकड़े नहीं दर्शाते? आईआईपीएस का कहना है कि अब तक जारी आंकड़े महज एक फैक्टशीट है। संस्थान अगले महीने राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी करेगा, जिसमें सामाजिक-आर्थिक संदर्भ का विवरण मुहैया कराया जाएगा।
