श्रम मंत्रालय अगस्त में संगठित क्षेत्र के लिए प्रतिष्ठानों में रोजगार का सर्वेक्षण प्रकाशित करेगा। इसमें वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही के आंकड़े होंगे। इसके बाद असंगठित क्षेत्र के लिए अप्रैल से दिसंबर के बीच इसी प्रकार के सर्वेक्षण किए जाएंगे। उनमें से पहले सर्वेक्षण की रिपोर्ट अगले वर्ष अप्रैल तक आएगी, जिसमें अगले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के आंकड़े शामिल होंगे।
मंत्रालय रोजगार की स्थिति का पता लगाने के लिए चार अन्य सर्वेक्षणों पर भी काम कर रहा है। ये सर्वेक्षण प्रवासी मजदूरों, घरेलू कामगारों, परिवहन क्षेत्र तथा पेशेवरों के बारे में होंगे। संगठित और असंगठित क्षेत्रों के बारे में सर्वेक्षण हर तिमाही में किए जाएंगे मगर बाकी चार सर्वेक्षण कितने अंतराल पर किए जाएंगे यह अभी तय नहीं किया गया है। श्रम आयुक्त डी पी एस नेगी ने कहा कि ये सर्वेक्षण साल में एक बार या दो बार कराए जा सकते हैं।
इस समय राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय एक सावधि श्रम बल सर्वेक्षण करता है, जो शहरी क्षेत्र में रोजगार की तिमाहीवार स्थिति का पता लगाता है। साथ ही वार्षिक श्रम बल सर्वेक्षण भी जारी किया जाता है, जिसमें शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र शामिल होते हैं। ये सर्वेक्षण पारिवारिक स्तर पर होते हैं। जब यह पूछा गया कि रोजगार का अंदाजा लगाने के लिए प्रतिष्ठानों में रोजगार का सर्वेक्षण बेहतर होता है या परिवारों में रोजगार का सर्वेक्षण तो नेगी ने कहा कि दुनिया भर में प्रतिष्ठानों में रोजगार का सर्वेक्षण ही बेहतर माना जाता है। नेगी ने बताया कि प्रवासी कामगारों तथा घरेलू कामगारों के बारे में होने वाले सर्वेक्षण घरेलू या पारिवारिक सर्वेक्षण होंगे तथा परिवहन क्षेत्र एवं पेशेवरों के बारे में होने वाले सर्वेक्षण प्रतिष्ठानों पर आधारित होंगे।
इन सर्वेक्षणों के नहीं होने पर कई विशेषज्ञ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली से कर्मचारियों के आंकड़े (पेरोल) हासिल करते हैं और उन्हीं से रोजगार की स्थिति का अंदाजा लगाते हैं। उदाहरण के लिए ईपीएफओ से मिले नवीनतम आंकड़ों से पता लगा कि अक्टूबर और नवंबर में कर्मचारियों की भर्ती में कमी आई मगर दिसंबर में एक बार फिर इसने तेजी पकड़ ली। दिसंबर में पेरोल की संख्या बढ़कर 12.5 लाख करोड़ तक पहुंच गई, जो नवंबर में 8.7 लाख करोड़ ही थी।
मगर इन आंकड़ों की व्याख्या करने में खासी सावधानी बरतनी पड़ती है। नेगी ने कहा कि पेरोल के आंकड़े रोजगार सृजन से ज्यादा इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अर्थव्यवस्था कितनी औपचारिक हो रही है।
श्रम मंत्रालय ने पेरोल आंकड़ों के बाद आठ क्षेत्रों में सृजित रोजगार के बारे में अपना तिमाही रोजगार सर्वेक्षण बंद कर दिया था। इस सर्वेक्षण में देश के कुल संगठित कार्यबल का 80 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा शामिल होता था। शहरी क्षेत्रों पर केंद्रित श्रम सर्वेक्षणों की बात करें तो नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 2020-21 में अप्रैल से जून के बीच बेरोजगारी की दर 20.9 प्रतिशत की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गई थी। उससे पिछली तिमाही में यह दर केवल 9.1 प्रतिशत रही थी। मगर यह भी ध्यान रखना होगा कि अप्रैल से जून के बीच पूरे देश में लॉकडाउन लागू था और आर्थिक गतिविधियां लगभग ठहर गई थीं।
