पंजाब में महिलाओं का खेतों में काम करना आम बात है। राज्य के फिरोजपुर जिले के माखु गांव में भी कभी ऐसा ही था, लेकिन वहां महिलाएं अब खेतों में दिखाई नहीं देतीं। ब्रिटेन के वीजा नियमों को सख्त करने और कनाडा द्वारा छात्रों के लिए बैंक खाते में जमा अनिवार्य धनराशि की सीमा लगभग दोगुनी कर देने जैसे फैसलों के कारण परिदृश्य बदल गया है।
ऑस्ट्रेलिया द्वारा छात्रों के लिए अंग्रेजी परीक्षा को कठिन बना देने से भी स्थिति बिगड़ी है। पंजाब के लोगों के लिए सबसे पसंदीदा रहे इन देशों में रहन-सहन की बदली परिस्थितियों ने लोगों को अपने देश लौटने के लिए मजबूर कर दिया है।
मनवीन (बदला हुआ नाम) मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत लंबे समय से काम कर रही थीं। ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के तहत पंजीकृत लोगों को सरकार की ओर से एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार दिया जाता है। कम मजदूरी के बावजूद वह इसे सुरक्षित रोजगार मानती थीं।
कार्यस्थल पर अपने दो साल के बच्चे की देखभाल करते हुए वह अन्य महिलाओं के साथ बेखटके काम करती रहती थीं। मनवीन के पति कनाडा में एक रेस्तरां में काम करते थे। महीने में एक बार फोन पर दोनों के बीच बातचीत हो जाती थी, लेकिन यह सब ज्यादा दिन नहीं चला और उनके पति भारत वापस आ गए। इस तरह मनवीन को अपने सुरक्षित रोजगार स्थल से हटकर घर बैठना पड़ा।
मनवीन ने बताया, ‘जब मेरे पति वापस आ गए तो ठेकेदार ने मेरी जगह उन्हें काम पर रख लिया। अब मुझे पूरा दिन अपने बच्चे की देखभाल करते हुए घर में बिताना पड़ता है। अब मेरे पास आय का कोई स्रोत नहीं है। हम दोनों काम कर सकते थे और बच्चे की देखरेख भी आसानी से हो जाती, लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा कि दिक्कत कहां पैदा हुई, जो मुझे काम से हटाया गया।’
यह केवल कृषि क्षेत्र की स्थिति नहीं है। दुकानों से लेकर औद्योगिक क्षेत्रों का भी ऐसा ही हाल है, जहां यदि पुरुष वापस आ जाते हैं, तो महिलाओं की जगह उन्हें ही काम पर रखने को प्राथमिकता दी जाती है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर मनवीन की दोस्त ने भी इसी प्रकार की बात कही। उन्होंने बताया कि वह धान प्रोसेसिंग फैक्टरी में काम करती थीं और प्रतिदिन 200 रुपये कमा लेती थीं। वह बताती हैं कि यह पारिश्रमिक पुरुषों के मुकाबले काफी कम होता है। नौकरी चली जाने पर जब उसका भाई ऑस्ट्रेलिया से भारत लौटा तो मनवीन की दोस्त को फैक्टरी ने घर पर ही रहने को कहा और उसकी जगह उसके भाई को नौकरी पर रख लिया।
माखु में दुकान चलाने वाली 32 वर्षीय चारु डेरी उत्पाद बेचती हैं, जिनमें से अधिकतर उनके अपने फार्म में तैयार किए जाते हैं। उनके परिवार में देखभाल करने के लिए उनकी दो बेटियां और सास हैं। घर के हालात उस समय बदल गए जब उनके पति ऑस्ट्रेलिया से लौट आए। वह नौकरी की तलाश में कुछ साल पहले ही वहां गए थे।
ऑस्ट्रेलिया जाकर काम करने के लिए उन्होंने 40 लाख रुपये खर्च कर दिए, जिनमें से लगभग 14 लाख तो एजेंट को ही देने पड़े। लेकिन हालात उनके पक्ष में नहीं हुए। अपने पति के नाम का खुलासा करने से परहेज करते हुए चारु ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद मेरे पति काफी तनाव में आ गए। मुझे लगा था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया। वह कुछ भी नहीं कमा रहे हैं और शराब के लिए घर से पैसे चुराते हैं। मुझे इस बात का डर सताता रहता है कि कहीं मेरा बेटा भी उनके नक्शेकदम पर न चल पड़े।
विदेश में काम करने के हालात बदलने से यहां महिलाओं पर विपरीत असर पड़ा है। जब घर के पुरुष दूसरे देश कमाने चले जाते थे तो महिलाएं घर संभालने के साथ-साथ खेतों में काम करतीं और घर-परिवार के सभी खर्चों का प्रबंधन कर लेतीं। लेकिन अब पुरुष वापस आ गए हैं तो महिलाएं वित्तीय मामलों में स्वयं निर्णय नहीं ले पातीं।
सिमरन के पति लंदन में उप डाकिया के तौर पर काम कर रहे थे। वर्ष 2020 में उनकी नौकरी चली गई और वह अपने देश लौट आए। उनके घर आते ही सिमरन के हालात में तब्दीली आ गई। वह बताती हैं, ‘जब उनके पति घर पर नहीं थे तो कुछ मामलों को छोड़, उन्हें सब कुछ करने की आजादी थी। घर के मामलों में मेरे पति दखल नहीं देते थे। हां, वित्तीय मामलों में जरूर हम दोनों मिलकर फैसले लेते थे, क्योंकि उनके नाम जमीन थी। इन सबके बावजूद मैं बहुत कुछ अपने दम पर कर लेती थी, क्योंकि अपने उत्पादों को मुझे स्वयं ही बाजार जाकर बेचना होता था। लेकिन पति के घर लौटने के बाद हम महिलाओं का काम केवल फसल बुवाई और कटाई तक सीमित कर दिया गया। वित्तीय मामलों में अब मैं कोई निर्णय नहीं ले सकती।’
दूसरे देशों में रहन-सहन की स्थितियां बहुत आसान नहीं रही हैं, लेकिन संघर्ष तो वहां जाने से बहुत पहले शुरू हो जाता है, क्योंकि विदेश जाने के लिए रकम जुटाना ही बहुत मुश्किलों भरा काम होता है। विदेश जाने के लिए कहीं-कहीं तो 40 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। गांवों में बहुत कम लोग ही इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाते हैं।
कुछ लोग साहूकारों से मोटे ब्याज पर पैसा उठाते हैं। आदमी के विदेश चले जाने पर घर की महिलाओं को ही वह ऋण चुकाना पड़ता है। वे इस उम्मीद में रहती हैं कि पति के विदेश चले जाने पर घर के हालात सुधर जाएंगे और सारा ऋण चुकता हो जाएगा। हालात तब विकट हो जाते हैं जब बहुत कुछ खास नहीं कर व्यक्ति अपने देश वापस आ जाता है।
एक महिला ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘मेरे पति कनाडा से लौट आए हैं, लेकिन बहुत ज्यादा रकम नहीं बचा पाए। साहूकार से लिया ऋण चुकाने के लिए हमें अपनी कुछ जमीन बेचनी पड़ी। वाकई हालात बहुत कठिन हैं।’